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Unsplash कुछ फासले अधूरे रह गए, कुछ नगमे अधूरे रह गए!!प्यार की उमीद थी जिनसे,वो इंसान ही हमसे दूर रह गए!! Shayar Bedi ©STAR ARTIS STUDIO

#शायरी  Unsplash कुछ फासले अधूरे रह गए, कुछ नगमे अधूरे रह गए!!प्यार की उमीद थी जिनसे,वो इंसान ही हमसे दूर रह गए!!
Shayar Bedi

©STAR ARTIS STUDIO

kuchh fasle @SwaTripathi मनीष शर्मा @Eshamahi @its_nastik_manoj_137 @bewakoof

15 Love

White ये आसमां ज़मीं पर उतर क्यों नहीं जाता ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता ये रुकता तो,बच्चे भी बच्चे रहते,हम भी हम रहते न वो दूर कहीं जाते,ना हम घर के बाहर ठहरते बदलते वक्त के हालात पर ये तरश क्यों नहीं खाता ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता झोपड़ियां सहमी है दुबकी हैं फट्टे शॉल में लिपटी है बकरियां फट्टे बोरे में,टूटी खाट पे हुई जा खड़ी हैं इस बेबसी में नए साल का फितूर उतर क्यों नहीं जाता ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता बाप कि जवानी लेकर बेटे बड़े हो रहे हैं इन्हें जवान करते बाप अधमरे हो रहे हैं रैन बसेरों का डर अब निकल क्यों नहीं जाता ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता राजीव ©samandar Speaks

#कविता #love_shayari  White  ये आसमां ज़मीं पर उतर क्यों नहीं जाता
ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता 

ये रुकता तो,बच्चे भी बच्चे रहते,हम भी हम रहते
न वो दूर कहीं जाते,ना हम घर के बाहर ठहरते
बदलते वक्त के हालात पर ये तरश क्यों नहीं खाता 
ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता

झोपड़ियां सहमी है दुबकी हैं फट्टे शॉल में लिपटी है
बकरियां फट्टे बोरे में,टूटी खाट पे हुई जा खड़ी हैं
इस बेबसी में नए साल का फितूर उतर क्यों नहीं जाता 
ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता

बाप कि जवानी लेकर बेटे बड़े हो रहे हैं
इन्हें जवान करते बाप अधमरे हो रहे हैं 
रैन बसेरों का डर अब निकल क्यों नहीं जाता
 ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता
राजीव

©samandar Speaks

#love_shayari मनीष शर्मा @Satyaprem Upadhyay Radhey Ray Poonam bagadia "punit" @Sandeep L Guru मनीष शर्मा @Satyaprem Upadhyay अंजान S

16 Love

White अब क्या बताऊं ये क्या हैं इक सपना है हिंदी में, या उर्दू में ख्वाब है, चाँद का आइना, सूरज का नक़ाब है। बारिशों की छन-छन, जैसे सितारों की सरगोशी, हवा की सरसराहट, मानो ज़ुबां पर कोई नज़्म रुकी हो। लहरों की हलचल, जैसे धड़कता हो समंदर का दिल, भँवरों की गुनगुनाहट, जैसे मौन की गहराई में छुपा एक गीत। अब क्या बताऊं ये क्या है, ये सुबह का आँचल, जिसमें रौशनी का जादू सिमटा है, ये शाम का सन्नाटा, जैसे थककर कायनात खुद को सुला रही हो। जंगलों की फुसफुसाहट, जैसे पेड़ आपस में राज़ बांट रहे हों, पहाड़ों की बुलंदी, जैसे किसी दुआ की सदा आसमान को छू गई हो। अब क्या बताऊं ये क्या है, ये बूँदें, जो धरती की प्यास बुझाकर मुस्कुराती हैं, ये मिट्टी की ख़ुशबू, जैसे कुदरत का इश्क़ ज़मीन से लिपट गया हो। ये फूलों का खिलना, जैसे हर सुबह एक नया अफ़साना लिखती हो, ये तितलियों का नृत्य, जैसे रूहानी ख़्वाबों का रंगीन कारवां। अब क्या बताऊं ये क्या है, ये बादलों का आग़ोश,जैसे किसी मां ने अपने बच्चे को छुपा लिया हो, ये झील का सुकून, जैसे किसी सूफी का दिल। कुदरत का हर रंग, हर सुर, हर अंदाज़, जैसे खुदा ने अपने दिल के सबसे गहरे कोने में हमारे लिए एक नज़्म लिख छोड़ी हो। अब क्या बताऊं ये क्या हैं राजीव@samandar speaks ©samandar Speaks

#कविता #love_shayari  White अब क्या बताऊं ये क्या हैं
इक सपना है हिंदी में, या उर्दू में ख्वाब है,
चाँद का आइना, सूरज का नक़ाब है।
बारिशों की छन-छन, जैसे सितारों की सरगोशी,
हवा की सरसराहट, मानो ज़ुबां पर कोई नज़्म रुकी हो।
लहरों की हलचल, जैसे धड़कता हो समंदर का दिल,
भँवरों की गुनगुनाहट, जैसे मौन की गहराई में छुपा एक गीत।
अब क्या बताऊं ये क्या है,
ये सुबह का आँचल, जिसमें रौशनी का जादू सिमटा है,
ये शाम का सन्नाटा, जैसे थककर कायनात खुद को सुला रही हो।
जंगलों की फुसफुसाहट, जैसे पेड़ आपस में राज़ बांट रहे हों,
पहाड़ों की बुलंदी, जैसे किसी दुआ की सदा आसमान को छू गई हो।
अब क्या बताऊं ये क्या है,
ये बूँदें, जो धरती की प्यास बुझाकर मुस्कुराती हैं,
ये मिट्टी की ख़ुशबू, जैसे कुदरत का इश्क़ ज़मीन से लिपट गया हो।
ये फूलों का खिलना, जैसे हर सुबह एक नया अफ़साना लिखती हो,
ये तितलियों का नृत्य, जैसे रूहानी ख़्वाबों का रंगीन कारवां।
अब क्या बताऊं ये क्या है,
ये बादलों का आग़ोश,जैसे किसी मां ने अपने बच्चे को छुपा लिया हो,
ये झील का सुकून, जैसे किसी सूफी का दिल।
कुदरत का हर रंग, हर सुर, हर अंदाज़,
जैसे खुदा ने अपने दिल के सबसे गहरे कोने में
हमारे लिए एक नज़्म लिख छोड़ी हो।
अब क्या बताऊं ये क्या हैं 
राजीव@samandar speaks

©samandar Speaks

Unsplash नीली आँखों का जादू और पलकों का पहरा गुलाबी ये आलम और दिल ठहरा ठहरा तब्बसुम मोतियों सा लबों पे है छाया और सुर्खी ए महरो है पसरा पसरा काले बादलों का घेरा ,और बारिश की बुँदे, चाँद हो जैसे की ,नहाया नहाया इस्लाम सी है ,लाम लट गेसुओं की अदा पे खुदा का ,है नूर, पसरा पसरा सांसो की ताज़गी में, कुदरत, की ख़ुशबू, एक जाम हर अदा जैसे हो छलका छलका Rajeev ©samandar Speaks

#कविता #camping  Unsplash नीली आँखों का जादू और पलकों का पहरा
गुलाबी ये आलम और दिल ठहरा ठहरा

तब्बसुम मोतियों सा लबों पे है छाया
और सुर्खी ए महरो है पसरा पसरा

काले बादलों का घेरा ,और बारिश की बुँदे,
चाँद हो जैसे की ,नहाया नहाया

इस्लाम सी है ,लाम लट गेसुओं की
अदा पे खुदा का ,है नूर, पसरा पसरा

सांसो की ताज़गी में, कुदरत, की ख़ुशबू,
एक जाम हर अदा जैसे हो छलका छलका
Rajeev

©samandar Speaks

#camping @Radhey Ray @Mukesh Poonia मनीष शर्मा @Anant @bewakoof

13 Love

Unsplash रिश्तों की डोर उलझे, तो टूट जाती है, जुड़ने का फ़न यहाँ किसे आता है? हर शख़्स यहाँ अपने ग़म में डूबा है, दूसरे के दर्द को कौन सहलाता है? मुलाक़ातें अब चेहरों तक सीमित हैं, दिल का रास्ता कोई कहां बनाता है? वादे क़समें सब बातें लगती हैं झूठी, रिश्ता निभाने का वक़्त कौन लाता है? जो सबसे क़रीब था जहां से दूर हो गया, यादों के साये से आदमी दिल बहलाता है। राजीव ©samandar Speaks

#कविता #Book  Unsplash रिश्तों की डोर उलझे, तो टूट जाती है,
जुड़ने का फ़न यहाँ किसे आता है?

हर शख़्स यहाँ अपने ग़म में डूबा है,
दूसरे के दर्द को कौन सहलाता है?

मुलाक़ातें अब चेहरों तक सीमित हैं,
दिल का रास्ता कोई कहां बनाता है?

वादे क़समें सब बातें लगती हैं झूठी,
रिश्ता निभाने का वक़्त कौन लाता है?

जो सबसे क़रीब था जहां से दूर हो गया,
यादों के साये से आदमी दिल बहलाता है।
राजीव

©samandar Speaks

White चलो लौट कर फिर से अपने गांव को गांव बनाते हैं, कभी बरगद तो कभी नीम की छांव को फिर सजाते हैं। जहां सुबह की पहली किरण मिट्टी को महकाती थी, शाम को गांव की गालियां खूब संग संग शोर मचाती थीं चलो फिर से यादों का सुंदर चौपाल सजाते हैं, चलो टीम टीम तारों संग सपने नए सजाते हैं जहां बैलगाड़ी की चर चर इक,नई धून सजाती थी, खेतों कि परछाई हर दिन नया सवेरा लाती थी। चलो लौट कर माटी से फिर नाता वहीं बनाते हैं, चलो उम्मीदों के आंगन में दीए वहीं जलाते हैं नदी किनारे ठंडा पानी कल कल अब भी बहता है पगडंडी का कंकड़ अब भी ठोकर निहारा करता है चलो फिर से पत्थर संग ठोकर का खेल रचाते हैं खिली हुई सरसों के संग मधुमास फिर लाते हैं मंदिर के घंटे की आहट से अंगड़ाई ले उठते थे घर दुआर के राहों पे बेखौफ लड़ाई करते थे चलो लौट कर सन्नाटे को गांव से छोड़ के आते हैं, फिर गायों को घुमाते हैं और लंबी दौड़ लगाते हैं, वहां पेड़ हमारे साथी थे, और आसमान भी अपना था, तोते, कुत्ते,भालू,बंदर खेल तमाशा अपना था कभी नीम तो कभी बरगद की छांव वहीं बनाते हैं, चलो लौट कर फिर से अपने गांव को गांव बनाते हैं। राजीव ©samandar Speaks

#कविता #love_shayari  White चलो लौट कर फिर से अपने गांव को गांव बनाते हैं,
कभी बरगद तो कभी नीम की छांव को फिर सजाते हैं।
जहां सुबह की पहली किरण मिट्टी को महकाती थी,
शाम को गांव की गालियां खूब संग संग शोर मचाती थीं 
चलो फिर से यादों का सुंदर चौपाल सजाते हैं,
चलो टीम टीम तारों संग सपने नए सजाते हैं 
जहां बैलगाड़ी की चर चर इक,नई धून सजाती थी,
खेतों कि परछाई हर दिन नया सवेरा लाती थी।
चलो लौट कर  माटी से फिर नाता वहीं बनाते हैं,
चलो उम्मीदों के आंगन में दीए वहीं जलाते हैं 
नदी  किनारे ठंडा पानी कल कल अब भी बहता है 
पगडंडी का कंकड़ अब भी ठोकर निहारा करता है 
चलो फिर से पत्थर संग ठोकर का खेल रचाते हैं
खिली हुई सरसों के संग मधुमास फिर लाते हैं 
मंदिर के घंटे की आहट से अंगड़ाई ले उठते थे
घर दुआर के राहों पे बेखौफ लड़ाई करते थे 
चलो लौट कर सन्नाटे को गांव से छोड़ के आते हैं,
फिर गायों को घुमाते हैं और लंबी दौड़ लगाते हैं,
वहां पेड़ हमारे साथी थे, और आसमान भी अपना था,
तोते, कुत्ते,भालू,बंदर खेल तमाशा अपना था
कभी नीम तो कभी बरगद की छांव वहीं बनाते हैं,
चलो लौट कर फिर से अपने गांव को गांव बनाते हैं।
राजीव

©samandar Speaks

Unsplash कुछ फासले अधूरे रह गए, कुछ नगमे अधूरे रह गए!!प्यार की उमीद थी जिनसे,वो इंसान ही हमसे दूर रह गए!! Shayar Bedi ©STAR ARTIS STUDIO

#शायरी  Unsplash कुछ फासले अधूरे रह गए, कुछ नगमे अधूरे रह गए!!प्यार की उमीद थी जिनसे,वो इंसान ही हमसे दूर रह गए!!
Shayar Bedi

©STAR ARTIS STUDIO

kuchh fasle @SwaTripathi मनीष शर्मा @Eshamahi @its_nastik_manoj_137 @bewakoof

15 Love

White ये आसमां ज़मीं पर उतर क्यों नहीं जाता ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता ये रुकता तो,बच्चे भी बच्चे रहते,हम भी हम रहते न वो दूर कहीं जाते,ना हम घर के बाहर ठहरते बदलते वक्त के हालात पर ये तरश क्यों नहीं खाता ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता झोपड़ियां सहमी है दुबकी हैं फट्टे शॉल में लिपटी है बकरियां फट्टे बोरे में,टूटी खाट पे हुई जा खड़ी हैं इस बेबसी में नए साल का फितूर उतर क्यों नहीं जाता ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता बाप कि जवानी लेकर बेटे बड़े हो रहे हैं इन्हें जवान करते बाप अधमरे हो रहे हैं रैन बसेरों का डर अब निकल क्यों नहीं जाता ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता राजीव ©samandar Speaks

#कविता #love_shayari  White  ये आसमां ज़मीं पर उतर क्यों नहीं जाता
ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता 

ये रुकता तो,बच्चे भी बच्चे रहते,हम भी हम रहते
न वो दूर कहीं जाते,ना हम घर के बाहर ठहरते
बदलते वक्त के हालात पर ये तरश क्यों नहीं खाता 
ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता

झोपड़ियां सहमी है दुबकी हैं फट्टे शॉल में लिपटी है
बकरियां फट्टे बोरे में,टूटी खाट पे हुई जा खड़ी हैं
इस बेबसी में नए साल का फितूर उतर क्यों नहीं जाता 
ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता

बाप कि जवानी लेकर बेटे बड़े हो रहे हैं
इन्हें जवान करते बाप अधमरे हो रहे हैं 
रैन बसेरों का डर अब निकल क्यों नहीं जाता
 ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता
राजीव

©samandar Speaks

#love_shayari मनीष शर्मा @Satyaprem Upadhyay Radhey Ray Poonam bagadia "punit" @Sandeep L Guru मनीष शर्मा @Satyaprem Upadhyay अंजान S

16 Love

White अब क्या बताऊं ये क्या हैं इक सपना है हिंदी में, या उर्दू में ख्वाब है, चाँद का आइना, सूरज का नक़ाब है। बारिशों की छन-छन, जैसे सितारों की सरगोशी, हवा की सरसराहट, मानो ज़ुबां पर कोई नज़्म रुकी हो। लहरों की हलचल, जैसे धड़कता हो समंदर का दिल, भँवरों की गुनगुनाहट, जैसे मौन की गहराई में छुपा एक गीत। अब क्या बताऊं ये क्या है, ये सुबह का आँचल, जिसमें रौशनी का जादू सिमटा है, ये शाम का सन्नाटा, जैसे थककर कायनात खुद को सुला रही हो। जंगलों की फुसफुसाहट, जैसे पेड़ आपस में राज़ बांट रहे हों, पहाड़ों की बुलंदी, जैसे किसी दुआ की सदा आसमान को छू गई हो। अब क्या बताऊं ये क्या है, ये बूँदें, जो धरती की प्यास बुझाकर मुस्कुराती हैं, ये मिट्टी की ख़ुशबू, जैसे कुदरत का इश्क़ ज़मीन से लिपट गया हो। ये फूलों का खिलना, जैसे हर सुबह एक नया अफ़साना लिखती हो, ये तितलियों का नृत्य, जैसे रूहानी ख़्वाबों का रंगीन कारवां। अब क्या बताऊं ये क्या है, ये बादलों का आग़ोश,जैसे किसी मां ने अपने बच्चे को छुपा लिया हो, ये झील का सुकून, जैसे किसी सूफी का दिल। कुदरत का हर रंग, हर सुर, हर अंदाज़, जैसे खुदा ने अपने दिल के सबसे गहरे कोने में हमारे लिए एक नज़्म लिख छोड़ी हो। अब क्या बताऊं ये क्या हैं राजीव@samandar speaks ©samandar Speaks

#कविता #love_shayari  White अब क्या बताऊं ये क्या हैं
इक सपना है हिंदी में, या उर्दू में ख्वाब है,
चाँद का आइना, सूरज का नक़ाब है।
बारिशों की छन-छन, जैसे सितारों की सरगोशी,
हवा की सरसराहट, मानो ज़ुबां पर कोई नज़्म रुकी हो।
लहरों की हलचल, जैसे धड़कता हो समंदर का दिल,
भँवरों की गुनगुनाहट, जैसे मौन की गहराई में छुपा एक गीत।
अब क्या बताऊं ये क्या है,
ये सुबह का आँचल, जिसमें रौशनी का जादू सिमटा है,
ये शाम का सन्नाटा, जैसे थककर कायनात खुद को सुला रही हो।
जंगलों की फुसफुसाहट, जैसे पेड़ आपस में राज़ बांट रहे हों,
पहाड़ों की बुलंदी, जैसे किसी दुआ की सदा आसमान को छू गई हो।
अब क्या बताऊं ये क्या है,
ये बूँदें, जो धरती की प्यास बुझाकर मुस्कुराती हैं,
ये मिट्टी की ख़ुशबू, जैसे कुदरत का इश्क़ ज़मीन से लिपट गया हो।
ये फूलों का खिलना, जैसे हर सुबह एक नया अफ़साना लिखती हो,
ये तितलियों का नृत्य, जैसे रूहानी ख़्वाबों का रंगीन कारवां।
अब क्या बताऊं ये क्या है,
ये बादलों का आग़ोश,जैसे किसी मां ने अपने बच्चे को छुपा लिया हो,
ये झील का सुकून, जैसे किसी सूफी का दिल।
कुदरत का हर रंग, हर सुर, हर अंदाज़,
जैसे खुदा ने अपने दिल के सबसे गहरे कोने में
हमारे लिए एक नज़्म लिख छोड़ी हो।
अब क्या बताऊं ये क्या हैं 
राजीव@samandar speaks

©samandar Speaks

Unsplash नीली आँखों का जादू और पलकों का पहरा गुलाबी ये आलम और दिल ठहरा ठहरा तब्बसुम मोतियों सा लबों पे है छाया और सुर्खी ए महरो है पसरा पसरा काले बादलों का घेरा ,और बारिश की बुँदे, चाँद हो जैसे की ,नहाया नहाया इस्लाम सी है ,लाम लट गेसुओं की अदा पे खुदा का ,है नूर, पसरा पसरा सांसो की ताज़गी में, कुदरत, की ख़ुशबू, एक जाम हर अदा जैसे हो छलका छलका Rajeev ©samandar Speaks

#कविता #camping  Unsplash नीली आँखों का जादू और पलकों का पहरा
गुलाबी ये आलम और दिल ठहरा ठहरा

तब्बसुम मोतियों सा लबों पे है छाया
और सुर्खी ए महरो है पसरा पसरा

काले बादलों का घेरा ,और बारिश की बुँदे,
चाँद हो जैसे की ,नहाया नहाया

इस्लाम सी है ,लाम लट गेसुओं की
अदा पे खुदा का ,है नूर, पसरा पसरा

सांसो की ताज़गी में, कुदरत, की ख़ुशबू,
एक जाम हर अदा जैसे हो छलका छलका
Rajeev

©samandar Speaks

#camping @Radhey Ray @Mukesh Poonia मनीष शर्मा @Anant @bewakoof

13 Love

Unsplash रिश्तों की डोर उलझे, तो टूट जाती है, जुड़ने का फ़न यहाँ किसे आता है? हर शख़्स यहाँ अपने ग़म में डूबा है, दूसरे के दर्द को कौन सहलाता है? मुलाक़ातें अब चेहरों तक सीमित हैं, दिल का रास्ता कोई कहां बनाता है? वादे क़समें सब बातें लगती हैं झूठी, रिश्ता निभाने का वक़्त कौन लाता है? जो सबसे क़रीब था जहां से दूर हो गया, यादों के साये से आदमी दिल बहलाता है। राजीव ©samandar Speaks

#कविता #Book  Unsplash रिश्तों की डोर उलझे, तो टूट जाती है,
जुड़ने का फ़न यहाँ किसे आता है?

हर शख़्स यहाँ अपने ग़म में डूबा है,
दूसरे के दर्द को कौन सहलाता है?

मुलाक़ातें अब चेहरों तक सीमित हैं,
दिल का रास्ता कोई कहां बनाता है?

वादे क़समें सब बातें लगती हैं झूठी,
रिश्ता निभाने का वक़्त कौन लाता है?

जो सबसे क़रीब था जहां से दूर हो गया,
यादों के साये से आदमी दिल बहलाता है।
राजीव

©samandar Speaks

White चलो लौट कर फिर से अपने गांव को गांव बनाते हैं, कभी बरगद तो कभी नीम की छांव को फिर सजाते हैं। जहां सुबह की पहली किरण मिट्टी को महकाती थी, शाम को गांव की गालियां खूब संग संग शोर मचाती थीं चलो फिर से यादों का सुंदर चौपाल सजाते हैं, चलो टीम टीम तारों संग सपने नए सजाते हैं जहां बैलगाड़ी की चर चर इक,नई धून सजाती थी, खेतों कि परछाई हर दिन नया सवेरा लाती थी। चलो लौट कर माटी से फिर नाता वहीं बनाते हैं, चलो उम्मीदों के आंगन में दीए वहीं जलाते हैं नदी किनारे ठंडा पानी कल कल अब भी बहता है पगडंडी का कंकड़ अब भी ठोकर निहारा करता है चलो फिर से पत्थर संग ठोकर का खेल रचाते हैं खिली हुई सरसों के संग मधुमास फिर लाते हैं मंदिर के घंटे की आहट से अंगड़ाई ले उठते थे घर दुआर के राहों पे बेखौफ लड़ाई करते थे चलो लौट कर सन्नाटे को गांव से छोड़ के आते हैं, फिर गायों को घुमाते हैं और लंबी दौड़ लगाते हैं, वहां पेड़ हमारे साथी थे, और आसमान भी अपना था, तोते, कुत्ते,भालू,बंदर खेल तमाशा अपना था कभी नीम तो कभी बरगद की छांव वहीं बनाते हैं, चलो लौट कर फिर से अपने गांव को गांव बनाते हैं। राजीव ©samandar Speaks

#कविता #love_shayari  White चलो लौट कर फिर से अपने गांव को गांव बनाते हैं,
कभी बरगद तो कभी नीम की छांव को फिर सजाते हैं।
जहां सुबह की पहली किरण मिट्टी को महकाती थी,
शाम को गांव की गालियां खूब संग संग शोर मचाती थीं 
चलो फिर से यादों का सुंदर चौपाल सजाते हैं,
चलो टीम टीम तारों संग सपने नए सजाते हैं 
जहां बैलगाड़ी की चर चर इक,नई धून सजाती थी,
खेतों कि परछाई हर दिन नया सवेरा लाती थी।
चलो लौट कर  माटी से फिर नाता वहीं बनाते हैं,
चलो उम्मीदों के आंगन में दीए वहीं जलाते हैं 
नदी  किनारे ठंडा पानी कल कल अब भी बहता है 
पगडंडी का कंकड़ अब भी ठोकर निहारा करता है 
चलो फिर से पत्थर संग ठोकर का खेल रचाते हैं
खिली हुई सरसों के संग मधुमास फिर लाते हैं 
मंदिर के घंटे की आहट से अंगड़ाई ले उठते थे
घर दुआर के राहों पे बेखौफ लड़ाई करते थे 
चलो लौट कर सन्नाटे को गांव से छोड़ के आते हैं,
फिर गायों को घुमाते हैं और लंबी दौड़ लगाते हैं,
वहां पेड़ हमारे साथी थे, और आसमान भी अपना था,
तोते, कुत्ते,भालू,बंदर खेल तमाशा अपना था
कभी नीम तो कभी बरगद की छांव वहीं बनाते हैं,
चलो लौट कर फिर से अपने गांव को गांव बनाते हैं।
राजीव

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