हिंदी लफ्फाजी

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#कहानी  हिंदी लफ्फाजी

स्वाधीनता

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कर्तव्यों से हाथ खींच, जब रहमत पे इतराते हैं परवश छांव की राह देख, सहमत होते जाते हैं। सकुचाते संवाद से, खुद अपनी ही फ़रियाद से आडंबर से लगे कभी, वो बरबस होते जाते हैं। गिर जाने, मुरझाने से, ना दिखे तो वो है क्षीणता आजादी की जब बात करो, हो रग रग में स्वाधीनता। भ्रम सरीखा दरिया है, समझ गए तो बढ़िया है उत्पत्ति के मूल भाव में, सर्वप्रधान नज़रिया है। अंजानी पहचान , खुद से पाले अभिमान बहुत पूर्वाग्रह रहीत राहें, सबल निर्माण का जरिया है। चेहरे पे सारे रंग हों , ना हो तो , वो है दीनता आजादी की जब बात करो, हो रग रग में स्वाधीनता।

#कविता  कर्तव्यों से हाथ खींच, जब रहमत पे इतराते हैं
परवश छांव की राह देख, सहमत होते जाते हैं।
सकुचाते संवाद से, खुद अपनी ही फ़रियाद से
आडंबर से लगे कभी, वो बरबस होते जाते हैं।

गिर जाने, मुरझाने से, ना दिखे तो वो है क्षीणता
आजादी की जब बात करो, हो रग रग में स्वाधीनता।

भ्रम सरीखा दरिया है, समझ गए तो बढ़िया है
उत्पत्ति के मूल भाव में, सर्वप्रधान नज़रिया है।
अंजानी पहचान , खुद से पाले अभिमान बहुत
पूर्वाग्रह रहीत राहें, सबल निर्माण का जरिया है।

चेहरे पे सारे रंग हों , ना हो तो , वो है दीनता
आजादी की जब बात करो, हो रग रग में स्वाधीनता।

स्वाधीनता

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#Digitalmediasollutions #अनुभव

शुरूआत हर सुबह की जिंदादिली से ही थी, पंछियों की गूंज में एक राग सा था। मन की सारी धाराएं उमंग से भरी थी, आशा के संचार में कोई दाग न था। क्यूं है निराश तू क्यों थक गए हैं पर, फूलों का शगल फ़िर होगा रगों के आशियाने फिर होंगे। जरा चाहत की कश्ती को पतवार दे निश्चय का, परिंदों की उड़ान में वही अरमां मिलेंगे।

#कविता #parindekiudaan  शुरूआत हर सुबह की
जिंदादिली से ही थी,
पंछियों की गूंज में
एक राग सा था।

मन की सारी धाराएं
उमंग से भरी थी,
आशा के संचार में
कोई दाग न था।

क्यूं है निराश तू
क्यों थक गए हैं पर,
फूलों का शगल फ़िर होगा
रगों के आशियाने फिर होंगे।

जरा चाहत की कश्ती को
पतवार दे निश्चय का,
परिंदों की उड़ान में
वही अरमां मिलेंगे।

कुछ कहा करते पलको से, इन आसुओ की लडी | वो चाहे तो सुन ले, क्या झूठी क्या खरी || राहे रहगुजर बेरुखी के, उसे संग नही कहते | जो रंगो की नुमाइश ना करे, उसे बेरंग नही कहते || स्याह स्वेत ऑगन मे , छीपे है कहानी कई | कभी इसकी कही कभी उसकी, तो कभी दास्तां नई || याद तो आती ही है , तुम्हे तंग नही करते | जो रंगो की नुमाइश ना करे, उसे बेरंग नही कहते ||

#रंग  कुछ कहा करते पलको से,
इन आसुओ की लडी  |
वो चाहे तो सुन ले,
क्या झूठी क्या खरी ||

राहे रहगुजर बेरुखी के,
उसे संग नही कहते |
जो रंगो की नुमाइश ना करे,
उसे बेरंग नही कहते ||

स्याह स्वेत ऑगन मे ,
छीपे है कहानी कई  |
कभी इसकी कही कभी उसकी,
तो  कभी दास्तां नई ||

याद तो आती ही है ,
तुम्हे तंग नही करते |
जो रंगो की नुमाइश  ना करे,
उसे बेरंग नही कहते ||

#रंग

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#बात #sapne

#sapne

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