शुरूआत हर सुबह की जिंदादिली से ही थी, पंछियों की ग | हिंदी कविता

"शुरूआत हर सुबह की जिंदादिली से ही थी, पंछियों की गूंज में एक राग सा था। मन की सारी धाराएं उमंग से भरी थी, आशा के संचार में कोई दाग न था। क्यूं है निराश तू क्यों थक गए हैं पर, फूलों का शगल फ़िर होगा रगों के आशियाने फिर होंगे। जरा चाहत की कश्ती को पतवार दे निश्चय का, परिंदों की उड़ान में वही अरमां मिलेंगे।"

 शुरूआत हर सुबह की
जिंदादिली से ही थी,
पंछियों की गूंज में
एक राग सा था।

मन की सारी धाराएं
उमंग से भरी थी,
आशा के संचार में
कोई दाग न था।

क्यूं है निराश तू
क्यों थक गए हैं पर,
फूलों का शगल फ़िर होगा
रगों के आशियाने फिर होंगे।

जरा चाहत की कश्ती को
पतवार दे निश्चय का,
परिंदों की उड़ान में
वही अरमां मिलेंगे।

शुरूआत हर सुबह की जिंदादिली से ही थी, पंछियों की गूंज में एक राग सा था। मन की सारी धाराएं उमंग से भरी थी, आशा के संचार में कोई दाग न था। क्यूं है निराश तू क्यों थक गए हैं पर, फूलों का शगल फ़िर होगा रगों के आशियाने फिर होंगे। जरा चाहत की कश्ती को पतवार दे निश्चय का, परिंदों की उड़ान में वही अरमां मिलेंगे।

#parindekiudaan

People who shared love close

More like this

Trending Topic