Sonu Kumar Yadav

Sonu Kumar Yadav

I am a teenager boy. I like to write. I feel that you can get the questions, thoughts, papers on the inside, saku. Since he understood it. Since then I love her. ye likhne ki kala kaho ya batane ki ye sab kuchh usi se mujhe mili hai ek usi me sama jayegi. My story is not easy. This is different from everyone. This is the story of love. this story is one way of Love. It is very painful. It hurts so much. He makes us feel from hell.

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 ना मुझे ये दीवानगी चाहिए ,
नहीं ये दर्द,
नहीं होने वाली मुझे कभी
किसी से मोहब्बत!!
इम्तिहान होती है मोहब्बत में 
इसलिए 
नहीं होगी कभी मुझे 
मोहब्बत।।

©Sonu Kumar Yadav

ना मुझे ये दीवानगी चाहिए , नहीं ये दर्द, नहीं होने वाली मुझे कभी किसी से मोहब्बत!! इम्तिहान होती है मोहब्बत में इसलिए नहीं होगी कभी मुझे मोहब्बत।। ©Sonu Kumar Yadav

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#halat  आज जिंदगी का एक
 नया चेहरा देखा है।

एक बच्चे के सामने रोता हुआ
एक पिता देखा है।

आज जिंदगी का एक 
नया चेहरा देखा है।

भरे बाजार में किसी को शर्मिंदा होते देखा है।
आज शाम मैंने बचपन को खोते देखा।

कठोरता की सारी हदें हुई है पार 
लोगों पर से विश्वास को उठते देखा है।

आज जिंदगी का एक
 नया चेहरा देखा है।

©Sonu Kumar Yadav

#halat

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 kahin Hui baten ab yad nahin rahti
bite hue log ab yad nahin
khud Ko bhi ham bhul gaye
Aisa badlav aaya
akele ham fir se a gaye
jindagi ne sath nibha
logo se ummid thi
ummidon ke sau tukde hue
Dil sab kuchh pakar
FIR Khali Ho Gaya
Aankhen Nam hokar bhi
ek aansu Tak Na bahaya.
adhuri Mohabbat adhuri rah gai....

©Sonu Kumar Yadav

kahin Hui baten ab yad nahin rahti bite hue log ab yad nahin khud Ko bhi ham bhul gaye Aisa badlav aaya akele ham fir se a gaye jindagi ne sath nibha logo se ummid thi ummidon ke sau tukde hue Dil sab kuchh pakar FIR Khali Ho Gaya Aankhen Nam hokar bhi ek aansu Tak Na bahaya. adhuri Mohabbat adhuri rah gai.... ©Sonu Kumar Yadav

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 अंत को कोसा जाता हैं।
कि! तू बुरा ही क्यों होता है?

अंत मुरझा जाता है,
मन में ख्याली पुलाव पकाना है,
असमंजस में खुद को पाता हैं।

फिर सूरज निकल कर आता है,
अपना अंत करवाता है,
दुनिया को या बतलाता है,
अंत खूबसूरत  भी हो सकती है।

जब अंत से भाग्य जुड़ा आरंभ का
तब अंत बुरा कैसे हो सकता है?

©Sonu Kumar Yadav

अंत को कोसा जाता हैं। कि! तू बुरा ही क्यों होता है? अंत मुरझा जाता है, मन में ख्याली पुलाव पकाना है, असमंजस में खुद को पाता हैं। फिर सूरज निकल कर आता है, अपना अंत करवाता है, दुनिया को या बतलाता है, अंत खूबसूरत भी हो सकती है। जब अंत से भाग्य जुड़ा आरंभ का तब अंत बुरा कैसे हो सकता है? ©Sonu Kumar Yadav

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 सावन के मौसम में अब तो
मै सूखा खुद को पाता हूँ।
भीड़ भरी इस दुनियाँ में भी
तन्हा सा फिर हो जाता हूँ।

©Sonu Kumar Yadav

सावन के मौसम में अब तो मै सूखा खुद को पाता हूँ। भीड़ भरी इस दुनियाँ में भी तन्हा सा फिर हो जाता हूँ। ©Sonu Kumar Yadav

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