अंत को कोसा जाता हैं।
कि! तू बुरा ही क्यों होता है?
अंत मुरझा जाता है,
मन में ख्याली पुलाव पकाना है,
असमंजस में खुद को पाता हैं।
फिर सूरज निकल कर आता है,
अपना अंत करवाता है,
दुनिया को या बतलाता है,
अंत खूबसूरत भी हो सकती है।
जब अंत से भाग्य जुड़ा आरंभ का
तब अंत बुरा कैसे हो सकता है?
©Sonu Kumar Yadav