White मौज मस्ती में जिंदगी गुजार रहे थे,
मेरे ख्वाब मुझे पुकार रहे थे।
मैं अपनी धुन में था, माँ बोली, "सुन बेटा,
अपने आगे की सोच।
अभी तेरे पास पैसा है, जब न होगा, तो न खिलाएंगे तेरे यार दोस्त।"
पर खुद से ज्यादा लोगों पर यकीन था,
घूमने फिरने का मैं शौकीन था।
हाँ, उस वक्त माँ की बातों को इग्नोर किया।
मेरा बुरा वक्त आया, तब उनकी बातों पर गौर किया।
बंदा मैं गलत था,
बुरा था बेवकूफ अलग था।
फायदा उठाया यारों ने भी,
जो करीब थे, उन पियरों ने भी।
अब देख रहा हूँ, काफी पीछे हूँ,
निकल गए सारे आगे।
ये दोस्ती मैं मजबूत नहीं निकले ,
कच्चे धागे।
हाँ, मानता हूँ, मंज़िल से दूर हूँ।
सोया हुआ था, अब जाग गया हूँ।
आगे बढ़ना चाहता हूँ, पर मजबूर हूँ।
थोड़ा टाइम लगेगा,
मेरा सोया हुआ नसीब, इंशा अल्लाह फिर से जगेगा।
©Asif Usmani
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