कभी कभी लगता है,
किसी से प्यार हो जाये।
मुझे जब भी बुरा लगे,
वो चुपचाप मुझे लगाये।
और तब तक न छोड़े,
जब तक मैं सो ना जाऊं।
बस डरता हूँ खुद से,
कहीं उस पर बोझ न बन जाऊं
इतना मतलबी हूँ ना मैं कि,
बाद में लगेगा मैं उसे क्यों मनाऊं
इसलिए जहाँ भी हूँ, जैसा हूँ,
चुपचाप वहाँ से चला जाऊं।
आदत पड़ जाती है ऐसे रहने की,
किसी से मिलना भी नहीं चाहता,
और चाहता हूँ सबको याद आऊं,
उस सुकून की तलाश में,
कभी कभी पूछता हूँ खुद से,
मैं घर में ही तो हूँ, घर से कहाँ जाऊं।
©Shreya Gangwar
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