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मेरी कविता सिर्फ शब्द नही , वो मैं ही हूँ।
White हर तरफ़ हर जगह बेशुमार आदमी फिर भी तन्हाइयों का शिकार आदमी सुब्ह से शाम तक बोझ ढोता हुआ अपनी ही लाश का ख़ुद मज़ार आदमी हर तरफ़ भागते दौड़ते रास्ते हर तरफ़ आदमी का शिकार आदमी रोज़ जीता हुआ रोज़ मरता हुआ हर नये दिन नया इंतज़ार आदमी घर की दहलीज़ से गेहूँ के खेत तक चलता फिरता कोई कारोबार आदमी ज़िन्दगी का मुक़द्दर सफ़र दर सफ़र आख़िरी साँस तक बेक़रार आदमी -: निदा फ़ाज़ली ©A Lost Poet
A Lost Poet
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White कभी किसी को मुकम्मल1 जहाँ नहीं मिलता कहीं ज़मीं तो कहीं आस्माँ नहीं मिलता बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले ये ऐसी आग है जिसमें धुआँ नहीं मिलता तमाम शह्र में ऐसा नहीं ख़ुलूस न हो जहाँ उम्मीद हो इसकी वहाँ नहीं मिलता कहाँ चिराग़ जलायें कहाँ गुलाब रखें छतें तो मिलती हैं लेकिन मकाँ नहीं मिलता ये क्या अज़ाब है सब अपने आप में गुम हैं ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलता चिराग़ जलते ही बीनाई बुझने लगती है ख़ुद अपने घर में ही घर का निशाँ नहीं मिलता -: निदा फ़ाज़ली ©A Lost Poet
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White कभी किसी को मुकम्मल1 जहाँ नहीं मिलता कहीं ज़मीं तो कहीं आस्माँ नहीं मिलता बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले ये ऐसी आग है जिसमें धुआँ नहीं मिलता -:निदा फ़ाज़ली ©Poet Rahul
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White भारत की जीत का सभी को बधाई ©Poet Rahul
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