White कभी किसी को मुकम्मल1 जहाँ नहीं मिलता कहीं ज | हिंदी शायरी

"White कभी किसी को मुकम्मल1 जहाँ नहीं मिलता कहीं ज़मीं तो कहीं आस्माँ नहीं मिलता बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले ये ऐसी आग है जिसमें धुआँ नहीं मिलता तमाम शह्‌र में ऐसा नहीं ख़ुलूस न हो जहाँ उम्मीद हो इसकी वहाँ नहीं मिलता कहाँ चिराग़ जलायें कहाँ गुलाब रखें छतें तो मिलती हैं लेकिन मकाँ नहीं मिलता ये क्या अज़ाब है सब अपने आप में गुम हैं ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलता चिराग़ जलते ही बीनाई बुझने लगती है ख़ुद अपने घर में ही घर का निशाँ नहीं मिलता -: निदा फ़ाज़ली ©A Lost Poet"

 White कभी किसी को मुकम्मल1 जहाँ नहीं मिलता 
कहीं ज़मीं तो कहीं आस्माँ नहीं मिलता

 बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले 
ये ऐसी आग है जिसमें धुआँ नहीं मिलता

 तमाम शह्‌र में ऐसा नहीं ख़ुलूस न हो 
जहाँ उम्मीद हो इसकी वहाँ नहीं मिलता

 कहाँ चिराग़ जलायें कहाँ गुलाब रखें 
छतें तो मिलती हैं लेकिन मकाँ नहीं मिलता

 ये क्या अज़ाब है सब अपने आप में गुम हैं 
ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलता

 चिराग़ जलते ही बीनाई बुझने लगती है 
ख़ुद अपने घर में ही घर का निशाँ नहीं मिलता
-: निदा फ़ाज़ली

©A Lost Poet

White कभी किसी को मुकम्मल1 जहाँ नहीं मिलता कहीं ज़मीं तो कहीं आस्माँ नहीं मिलता बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले ये ऐसी आग है जिसमें धुआँ नहीं मिलता तमाम शह्‌र में ऐसा नहीं ख़ुलूस न हो जहाँ उम्मीद हो इसकी वहाँ नहीं मिलता कहाँ चिराग़ जलायें कहाँ गुलाब रखें छतें तो मिलती हैं लेकिन मकाँ नहीं मिलता ये क्या अज़ाब है सब अपने आप में गुम हैं ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलता चिराग़ जलते ही बीनाई बुझने लगती है ख़ुद अपने घर में ही घर का निशाँ नहीं मिलता -: निदा फ़ाज़ली ©A Lost Poet

#sad_qoute निदा फ़ाज़ली

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