Savita Suman

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White Happy Diwali 🪔🎇🪔🎇🪔🎇💐💐 जगमग जगमग दीप जले चारों ओर हो उजियारा मिट जाए अंधियारा जग का ऐसा हो दीपावली हमारा धन धान्य लेकर आए मां लक्ष्मी गणपति जी देंगे शुभ आशीष रिद्धि सिद्धि संग रहे हमेशा करें प्रार्थना हम झुका कर शीष गुझिया मिठाई मीठे पकवान झूक कर करें हम सबका सम्मान कहे जोत ये दीपक का मन‌ के अंधियारे को मिटाओ लेकर‌ उम्मीद की ज्योति जीवन पथ पर बढ़ते जाओ नहीं किसी से बैर रखो ना दो किसी को आघात सत्य की राह पर चल कर अपनाओ सच्चे मानवता का साथ @सविता 'सुमन' सहरसा बिहार ©Savita Suman

#कविता #happy_diwali  White Happy Diwali 🪔🎇🪔🎇🪔🎇💐💐
जगमग जगमग दीप जले
चारों ओर हो उजियारा 
मिट जाए अंधियारा जग का
ऐसा हो दीपावली हमारा
धन धान्य लेकर आए मां लक्ष्मी 
गणपति जी देंगे शुभ आशीष 
रिद्धि सिद्धि संग रहे हमेशा 
करें प्रार्थना हम झुका कर शीष
गुझिया मिठाई मीठे पकवान 
झूक कर करें हम सबका सम्मान 
कहे जोत ये दीपक का 
मन‌ के अंधियारे को मिटाओ
लेकर‌ उम्मीद की ज्योति 
जीवन पथ पर बढ़ते जाओ
नहीं किसी से बैर रखो 
ना दो किसी को आघात 
सत्य की राह पर चल कर 
 अपनाओ सच्चे मानवता का साथ 
@सविता 'सुमन' सहरसा बिहार

©Savita Suman

White #धनतेरस धन धान्य से भरे घर खुशियां मिले आपार लक्ष्मी गणेश का साथ हो फले फूले व्यापार भगवान धन्वंतरि का जन्मदिन आज मनाएं हम दें आशीर्वाद हमें रहे स्वस्थ निरोग सारा संसार @सविता 'सुमन' ©Savita Suman

#धनतेरस #कविता #Dhanteras  White #धनतेरस 
धन धान्य से भरे घर खुशियां मिले आपार
लक्ष्मी गणेश का साथ हो फले फूले व्यापार 
भगवान धन्वंतरि का जन्मदिन आज मनाएं हम
दें आशीर्वाद हमें रहे स्वस्थ निरोग सारा संसार 
@सविता 'सुमन'

©Savita Suman

White #कवि जो हूं  कभी जज़्बात लिखती हूं कभी हालात  कभी लिखती हूं अंधेरे में छुपी हर बात  कभी  शब्दों से समाज की बुराई पर प्रहार  तो कभी टूटते बिखरते रिश्तों की हार कभी लिखती हूं चांद तारों की जगमगाहट  कभी लिखती हूं घनी अंधेरी रात  कभी पंछियों की चहचहाहट में सुकून  तो कभी लिखती हूं सरिता और जलप्रपात  कभी लिखती हूं पवॆतों सी खामोशी  कभी अंदर तक भेदती चीखती आवाज  कभी लिखती हूं भक्ति में डूबे हुए गीत  कभी लिखती हूं जग की अलबेली रीत सबकुछ तो लिखती हूं इन पन्नों पे  पर नहीं लिख पाती कभी अपने हीं  मन के अन्दर कैद हुई कई बात कवि जो हूं शब्दों को पिरोती हूं  पर आखिरी मोती सी अकेली रह जाती हूं  @सविता 'सुमन' ©Savita Suman

#कवि_जो_हूं #कविता #Sad_Status #कवि  White #कवि जो हूं 

कभी जज़्बात लिखती हूं कभी हालात 

कभी लिखती हूं अंधेरे में छुपी हर बात 

कभी  शब्दों से समाज की बुराई पर प्रहार 

तो कभी टूटते बिखरते रिश्तों की हार

कभी लिखती हूं चांद तारों की जगमगाहट 

कभी लिखती हूं घनी अंधेरी रात 

कभी पंछियों की चहचहाहट में सुकून 

तो कभी लिखती हूं सरिता और जलप्रपात 

कभी लिखती हूं पवॆतों सी खामोशी 

कभी अंदर तक भेदती चीखती आवाज 

कभी लिखती हूं भक्ति में डूबे हुए गीत 

कभी लिखती हूं जग की अलबेली रीत

सबकुछ तो लिखती हूं इन पन्नों पे 

पर नहीं लिख पाती कभी अपने हीं 

मन के अन्दर कैद हुई कई बात

कवि जो हूं शब्दों को पिरोती हूं 

पर आखिरी मोती सी अकेली रह जाती हूं 

@सविता 'सुमन'

©Savita Suman

BeHappy #सितम ढाने लगे हैं  अब तो आंसू भी आंखों से कतराने लगे हैं  ग़म इस तरह हम अपना छुपाने लगे हैं  कोई देता है ज़ख्म हर रोज इस तरह हमें  ज़ख्म भी अब हमको पसंद आने लगे हैं  नहीं मुझको अब  ग़म दूर निकल जाने का पास आकर हीं भला क्या पाने लगे हैं  दौर शिकायतों का ख़त्म होता नहीं कभी  बात दिल पर ना लगा खुद को हीं समझाने लगे हैं  कहां छोड़ आए हैं वो खुशियों का गुलदस्ता  ये सोचकर अब बिखर जाने लगे हैं  वो जो मिलते थे कभी बनकर अज़ीज़  बता कर मसरूफियत निकल जाने लगे हैं  बची कितनी सांसें नहीं मालूम मुझे  मगर सांसों पे अपने तरस खाने लगे हैं  दूर कहीं से पूकार लेगा मुझे वो संगदिल  ये सोचकर थोड़ा मुस्कुराने लगे हैं  कदम उस और हीं बढ़ा लूं 'सुमन' हमपे साया हमारा सितम ढाने लगे हैं  @सविता 'सुमन' सहरसा बिहार ©Savita Suman

#सितमढानेलगेहैं #कविता #सितम  BeHappy #सितम ढाने लगे हैं 

अब तो आंसू भी आंखों से कतराने लगे हैं 

ग़म इस तरह हम अपना छुपाने लगे हैं 

कोई देता है ज़ख्म हर रोज इस तरह हमें 

ज़ख्म भी अब हमको पसंद आने लगे हैं 

नहीं मुझको अब  ग़म दूर निकल जाने का

पास आकर हीं भला क्या पाने लगे हैं 

दौर शिकायतों का ख़त्म होता नहीं कभी 

बात दिल पर ना लगा खुद को हीं समझाने लगे हैं 

कहां छोड़ आए हैं वो खुशियों का गुलदस्ता 

ये सोचकर अब बिखर जाने लगे हैं 

वो जो मिलते थे कभी बनकर अज़ीज़ 

बता कर मसरूफियत निकल जाने लगे हैं 

बची कितनी सांसें नहीं मालूम मुझे 

मगर सांसों पे अपने तरस खाने लगे हैं 

दूर कहीं से पूकार लेगा मुझे वो संगदिल 

ये सोचकर थोड़ा मुस्कुराने लगे हैं 

कदम उस और हीं बढ़ा लूं 'सुमन'

हमपे साया हमारा सितम ढाने लगे हैं 

@सविता 'सुमन'

सहरसा बिहार

©Savita Suman

White #हरसिंगार  शरद रात की आगोश में  फिर हरसिंगार मुस्कुराया है  झिलमिल करती इनकी कलियां  सुगंध कितना फैलाया है  ओस की बूंदों में लिपटी  जैसे कोई अल्हड़ बाला अंगारे सी इसकी डंठल  जैसे प्रीत की ज्वाला  बिखर जाती धरा पर ऐसे  जैसे बिखरी हो ज्योति  राह तकते प्रियतम की आंसुओ की मोती  अंजूरी में भर कर किसी के  देवालय के प्रांगण तक जाएगी  गूंथ माला में कलियों के संग देवी के गले में खिलखिलाएगी  भाग्य बड़ा है इसका भी  पावन‌ ऋतु में आती है  चढ़ कर मां के चरणों में  भाग्य पर इतराती है  महज फूल नहीं ये हरश्रृंगार  औषधि की है भंडार  तभी तो सभी करते इतना प्यार ©Savita Suman

#हरसिंगार  #हरसिंगार #कविता #love_shayari  White #हरसिंगार 

शरद रात की आगोश में 

फिर हरसिंगार मुस्कुराया है 

झिलमिल करती इनकी कलियां 

सुगंध कितना फैलाया है 

ओस की बूंदों में लिपटी 

जैसे कोई अल्हड़ बाला

अंगारे सी इसकी डंठल 

जैसे प्रीत की ज्वाला 

बिखर जाती धरा पर ऐसे 

जैसे बिखरी हो ज्योति 

राह तकते प्रियतम की

आंसुओ की मोती 

अंजूरी में भर कर किसी के 

देवालय के प्रांगण तक जाएगी 

गूंथ माला में कलियों के संग

देवी के गले में खिलखिलाएगी 

भाग्य बड़ा है इसका भी 

पावन‌ ऋतु में आती है 

चढ़ कर मां के चरणों में 

भाग्य पर इतराती है 

महज फूल नहीं ये हरश्रृंगार 

औषधि की है भंडार 

तभी तो सभी करते इतना प्यार

©Savita Suman

White #हरसिंगार शरद रात की आगोश में फिर हरसिंगार मुस्कुराया है झिलमिल करती इनकी कलियां सुगंध कितना फैलाया है ओस की बूंदों में लिपटी जैसे कोई अल्हड़ बाला अंगारे सी इसकी डंठल जैसे प्रीत की ज्वाला बिखर जाती धरा पर ऐसे जैसे बिखरी हो ज्योति राह तकते प्रियतम की आंसुओ की मोती अंजूरी में भर कर किसी के देवालय के प्रांगण तक जाएगी गूंथ माला में कलियों के संग देवी के गले में खिलखिलाएगी भाग्य बड़ा है इसका भी पावन‌ ऋतु में आती है चढ़ कर मां के चरणों में भाग्य पर इतराती है महज फूल नहीं ये हरश्रृंगार औषधि की है भंडार तभी तो सभी करते इतना प्यार ©Savita Suman

#हरसिंगार #कविता #love_shayari  White #हरसिंगार 
शरद रात की आगोश में 
फिर हरसिंगार मुस्कुराया है 
झिलमिल करती इनकी कलियां 
सुगंध कितना फैलाया है 
ओस की बूंदों में लिपटी 
जैसे कोई अल्हड़ बाला
अंगारे सी इसकी डंठल 
जैसे प्रीत की ज्वाला 
बिखर जाती धरा पर ऐसे 
जैसे बिखरी हो ज्योति 
राह तकते प्रियतम की
आंसुओ की मोती 
अंजूरी में भर कर किसी के 
देवालय के प्रांगण तक जाएगी 
गूंथ माला में कलियों के संग
देवी के गले में खिलखिलाएगी 
भाग्य बड़ा है इसका भी 
पावन‌ ऋतु में आती है 
चढ़ कर मां के चरणों में 
भाग्य पर इतराती है 
महज फूल नहीं ये हरश्रृंगार 
औषधि की है भंडार 
तभी तो सभी करते इतना प्यार

©Savita Suman
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