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युवा कवि, शायर, गीतकार गाडरवारा म.प्र.
.आज का दोहा बची संस्कृति नाम की, हैं नूतन परिधान! जितने ओछे वस्त्र हैं , उतने ही इंसान !! -विवेक दीक्षित 'स्वतंत्र ' ©Vivek Dixit swatantra
Vivek Dixit swatantra
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nojoto अब बेईमान हो गई है, पहले सात दिन की क्रिएशन पर पाँच सात रुपए मिल ही जाते थे। फिर दस बीस पैसे मिलने लगे। और उसके बाद वो भी बंद। और हम पागलो की तरह क्रिएशन करने में लगे है जिसमे सर्वाधिक डाटा खर्च होता है। ©Vivek Dixit swatantra
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