राहत ने जिस दुर्भावना के साथ ये "सभी का खून है शामिल है" लिखा था
उसका और खूबसूरत जवाब "बेचैन मधुपुरी" जी ने दिया है।
"बेचैन मधुपुरी"ने बहुत ही बेहतरीन जवाब दिया है,
आप भी उनके कायल हो जाएँगे।
“ख़फ़ा होते हैं तो हो जाने दो,घर के मेहमान थोड़ी हैं,
सारे जहाँ भर से लताड़े जा चुके हैं,इनका मान थोड़ी है.
ये कान्हा राम की धरती है,सजदा करना ही होगा,
मेरा वतन ये मेरी माँ है, लूट का सामान थोड़ी है.
मैं जानता हूँ, घर में बन चुके हैं सैकड़ों भेदी,
जो सिक्कों में बिक जाए, वो मेरा ईमान थोड़ी है.
मेरे पुरखों ने सींचा है, इस वतन को अपने लहू के कतरों से,
बहुत बांटा मगर अब बस, ख़ैरात थोड़ी है.
जो रहजन थे, उन्हें हाकिम बना कर उम्र भर पूजा।
मगर अब हम भी' सच्चाई से अनजान थोड़े हैं ?
बहुत लूटा फिरंगीयो ने, कभी बाबर के पूतों ने,
ये मेरा मेरा घर है, मुफ्त की सराय थोड़ी है.
कुछ तो अपने भी शामिल है,वतन तोड़ने में।*
अब ये कन्हैया और रविश' देश भक्त मुसलमान थोड़ी है.
नहीं शामिल है' तुम्हारा खून इस मिट्टी में।
ये तुम्हारे बाप का' हिंदुस्तान थोड़ी है.
यकीनन किरायेदार ही ' मालूम पड़ते हैं ये,इस मुल्क में।
यूं बेमुरव्वत अपना ही मकान, कोई जलाता थोड़े है ?
सभी का खून शामिल था यहाँ की मिट्टी में, हम अनजान थोड़े हैं?
किंतु जिनके अब्बा ले चुके पाकिस्तान, अब उनका हिंदुस्तान थोड़े है?🙏
कवि को इन राहत इंदौरी जैसे मक्कारों की असलियत उजागर करने वाली कविता लिखने के लिए कोटिशः साधुवाद
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जय जय भारत माता
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©Ravi Gupta
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