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ना किसी के आने की खुशी, ना किसी के जाने का ग़म । खुद में ही मस्त रहकर ,खुद में ही जीते है हम।।
जोश में होश खो देते हैं अक्सर हम अपनी किस्मत पे रो देते हैं बेहतर हो कुछ ,तो खुद की मेहनत बताते हैं। बुरा हो तो कुछ, अपनी किस्मत पे इतराते है। तो फिर क्या हैं, कर्म और किस्मत हमारी हम पर ही है, ये कि कैसी हैं कलम हमारी कर्म स्याही हैं, और कलम किस्मत हमारी बिन स्याही के, किस्मत अधूरी है हमारी ।। (m.bhatt) ©Manoj Bhatt
Manoj Bhatt
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मैं ख़ुद को थोड़ा बदल रहा हूं यकिन्न मैं वक्त के साथ चल रहा हूं अब कोई बुरा भी कहें मुझ को तो मैं खुद को बुरा ही मान लेता हूं क्योंकि अभी मेरा वक्त बुरा है यही सोचकर दिल थाम लेता हूं अब किस किस को सफाई दूंगा और किस-किस को मैं मनाऊंगा अब जब वक्त बदलेगा मेरा तो मैं भी वक्त के साथ बदल जाऊंगा फिर न कहना मैं बदल गया हूं मैं वक्त के साथ था वक्त के साथ चल रहा हूं ।। (m.bhatt) ©Manoj Bhatt
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खुद का रावण जीवित रख क्यू पुत्तला फूक रहे हो एक चिंगारी देना खुद के भीतर यदि मन में आग लगा सको तुम ।। रावण इतना नीच नहीं था जितना हम खुद का मन कर बैठे हैं अपनी आशा तृष्णाओं से हम भी तो एक रावण बन बैठे हैं।। रावण का पुतला जला सके इतना सामर्थ कहा हम में क्या बता सकते हो एक गुण भी जो रावण से बेहतर हो तुममें ।। इसलिए रावण को जलाने का ख़्वाब मन से हटा दो तुम हो सके तो इस दशहरे पर मन के रावण में आग लगा दो तुम।। (m.bhatt) ©Manoj Bhatt
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