एक दौर ऐसा था तेरे इत्र की खुशबू मेरे बदन से आती थी।।
जब भी देखता मैं नजरें भर के तुम्हें, तूं शर्मा-सी जाती थी।।
वो गली तुझे याद तो होगी , जब मैं तुझे मिलने बुलाता
तूं मूझसे बेबाब होकर जो मिलने आती थी ।।
तेरा गले मिलना और तुझे चूमना हर रोज का किस्सा था,
तेरा आशिक न था, फिर भी तुम मेरे हो ,
नज़ाने क्यूं मुझपे इतना हक जताती थी।।
एक दौर ऐसा था तेरे इत्र की खुशबू मेरे बदन से आती थी।।
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©Shekhar suman Meghwal
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