MamtaYadav

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Unsplash कुछ खास नहीं हैं तेरे बिना मेरे हालात जागी जागी सी रहती है रातें सूनी सूनी सी रहती है दोपहर भरी चार दिवारी और बिखरे हुए रहते हैं मेरे दिल ओ जज़्बात 🥀 ©MamtaYadav

#library #Quotes  Unsplash कुछ खास नहीं हैं तेरे बिना मेरे हालात 
जागी जागी सी रहती है रातें
सूनी सूनी सी रहती है दोपहर भरी चार दिवारी
और बिखरे हुए रहते हैं मेरे दिल ओ जज़्बात 🥀

©MamtaYadav

#library

13 Love

White इस कदर बेकदर हुए कि बेगुनाह होकर भी रो न सके सितम होते रहे हम पर और लोग सितमगर के पक्ष में ही रंगते गए ©MamtaYadav

#sad_shayari #Quotes  White इस कदर बेकदर हुए कि
बेगुनाह होकर भी रो न सके
सितम होते रहे हम पर 
और 
लोग सितमगर के पक्ष में ही रंगते गए

©MamtaYadav

#sad_shayari

14 Love

White स्त्री छोड़ कर चली जाती है एक दिन सब कुछ मन में हजार बार दूर होने के बाद .... ©MamtaYadav

#sad_shayari  White स्त्री छोड़ कर चली जाती है एक दिन सब कुछ
मन में हजार बार दूर होने के बाद ....

©MamtaYadav

#sad_shayari

11 Love

White नखरे और खर्चे बिना उफ़ किए सिर्फ मां बाप ही उठाते हैं बाकी दुनियां के हर एक रिश्ते के लिए हम सदा के लिए बोझ ही रहते हैं ।। ©MamtaYadav

#mothers_day  White नखरे और खर्चे 
बिना उफ़ किए 
सिर्फ मां बाप ही
उठाते हैं
बाकी दुनियां के 
हर एक रिश्ते के लिए
हम सदा के लिए बोझ ही रहते हैं ।।

©MamtaYadav

#mothers_day

14 Love

White ये बड़ी बड़ी इमारतें किसी दिन ढह जाने के लिए खड़ी है खामोशी से देख रही हैं सारे शहर की हलचल को मगर खुद खामोश हो कर खड़ी है सोच रही होंगी ये खिड़कियां भी मुझे देख कर, आखिर क्या है इसके अंदर बेवजह बेहिसाब सा खामोश खड़ा एक नजर से केवल इमारत और दीवार को है देख रहा उन्हें क्या पता किस दौर से मैं गुजर रहा ना हारा हूं, ना टूटा हूं बस मैं खुद ही में कहीं लापता सा हूं ढूंढ रहा हूं मैं भी अपने खोए वजूद को इन्हीं झरोखों में किस मंजिल पे रहता था यही तो खामोश होकर ढूंढ रहा हूं किसी कहानी की किताब सी होकर रह गई मेरी भी हसरतें यूं ही क्या पता था, मैं फिर अजनबी हो जाऊंगा इस शहर के लिए फिर इक दफा।। ©MamtaYadav

#alone_sad_shayri #Quotes  White ये बड़ी बड़ी इमारतें किसी दिन ढह जाने के लिए खड़ी है
खामोशी से देख रही हैं सारे शहर की हलचल को
मगर खुद खामोश हो कर खड़ी है
सोच रही होंगी ये खिड़कियां भी 
मुझे देख कर,
आखिर क्या है इसके अंदर बेवजह 
बेहिसाब सा खामोश खड़ा 
एक नजर से केवल इमारत और दीवार को है देख रहा
उन्हें क्या पता किस दौर से मैं गुजर रहा
ना हारा हूं, ना टूटा हूं 
बस मैं खुद ही में कहीं 
लापता सा हूं 
ढूंढ रहा हूं मैं भी अपने खोए वजूद को
इन्हीं झरोखों में किस मंजिल पे रहता था 
यही तो खामोश होकर ढूंढ रहा हूं 
किसी कहानी की किताब सी होकर रह गई 
मेरी भी हसरतें यूं ही
क्या पता था,
मैं फिर अजनबी हो जाऊंगा इस शहर 
के लिए फिर इक दफा।।

©MamtaYadav

White इसी टूटे हुए पत्ते की तरह हो जाती है मां बाप से बिछड़ के किसी शाख से टूट गिरी हों ऐसे ही पड़ी हुई मिलती हैं बियाही बेटियां ©MamtaYadav

#sad_shayari  White इसी टूटे हुए पत्ते की तरह हो जाती है 
मां बाप से बिछड़ के 
किसी शाख से टूट गिरी हों 
ऐसे ही पड़ी हुई मिलती हैं
बियाही बेटियां

©MamtaYadav

#sad_shayari

13 Love

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