White मन
हर शख्स के अंदर होता है एक मासूम सा बच्चा ।
जो उम्र की सीढ़ियों पे चढ़ते हुए थकने लगता है
कहीं किसी कोने में ठहरकर सुबकने लगता है ।
न जाने कितनी बार सहम जाता है वो
किसी अपने को खोने से ,
किसी के अजनबी होने से ,
कुछ सपनो के टूटने से ,
पुराने साथी छूटने से ।
पर उस बालक को जिंदा रखना पड़ता है ,
है दिल एक पौधा जिसे हरा रखना तो बनता है ।
किसी के साथ वक्त गुजारने से ,
जो हो गई गलतियां उन्हें सुधारने से ,
अपनी कहानी में नए किरदार लाने से ,
थोड़ा हमदर्दी रखकर जमाने से ।
मन के बंदे को जरूरी है रखना जीवंत,
हैं दुख अगर तो मौजूद है सुख भी अनंत ।
है संसार एक चुंबक ये तो तुम पर निर्भर करता है ,
किसको दिखाई पीठ किसे लगाए सीने से इसका असर पड़ता है ।
मन है एक नन्ही सी जान इस को रखो खुश ,
किसको है मालूम कब जायेंगी ये सांसें रुक ।
©Pratyush Saxena
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