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क्या नहीं और ग़ज़नवी कारगह-ए-हयात में बैठे हैं कब से मुंतज़िर अहल-ए-हरम के सोमनात! ज़िक्र-ए-अरब के सोज़ में, फ़िक्र-ए-अजम के साज़ में ने अरबी मुशाहिदात, ने अजमी तख़य्युलात क़ाफ़िला-ए-हिजाज़ में एक हुसैन भी नहीं ©noshad meerut
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Ulajhh rhay hain Zamanay se Chandd Deewanay ©noshad meerut
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Huwi Issi Se Tere Ghumkade Ki Abadi Teri Ghulami Ke Sadqe Hazar Azadi ©noshad meerut
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तौहीद की अमानत सीनों में है हमारे आसाँ नहीं मिटाना नाम-ओ-निशाँ हमारा दुनिया के बुत-कदों में पहला वो घर ख़ुदा का हम इस के पासबाँ हैं वो पासबाँ हमारा ©noshad meerut
क्यूँ मुसलामानों में है दौलत-ए-दुनिया नायाब तेरी क़ुदरत तो है वो जिस की न हद है न हिसाब । ©noshad meerut
बैतूल मुकद्दस, और मस्जिदे अक्सा तोहफा है। मुसलमानों के लिए अल्लाह के रसूल की तरफ से और हज़रत उमर की तरफ से। ©noshad meerut
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