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SHAILESH TIWARI
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अब जीने की ख्वाहिश है नही बस दिदारे जहन्नुम बाकी है तेरे दर से ठुकराया गया जन्नत मे सुकून अब क्या होगा।। ©SHAILESH TIWARI
26 Love
हंसी की, चादरों से चेहरा छुपाए बैठे हो घुट रही है रूह इसमें सिसकियां छुपाए बैठे हो दर्दोगम पर मालिकाना अपना जमाए बैठे हो हक हमारा भी है इसको क्यों भुलाए बैठे हो.... ©SHAILESH TIWARI
22 Love
होलिका है जल चुकी पर मैं हूं अब भी जल रहा कौन अपना कौन दुश्मन कुछ नही है दिख रहा रंग होली के है कम इंसान के ज्यादा दिखे हर डगर अंजान लगती अर्जुन सा अनुभव हो रहा।। ©SHAILESH TIWARI
19 Love
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