तेरे मन के सारे ऊल तू ख्याल त्याग दे,
ये रोज रोज की झंझट ये बवाल त्याग दे,
किस्से लिपट कर रो लें सभी के हाथ में खंजर,
कष्ट देते ये सवाल जो है वो सवाल त्याग दे,
दर्द की कसौटी यार न तू इस कदर बढ़ा,
शब्दों की नोक पे धरे जो मेरे गाल त्याग दे,
अपनी अग्नि से जलाकर मुझ पर फेकती है तू,
है मेरी ये विनय तू वो मृणाल त्याग दे,
ये हुस्न की बला पर जिन्न ये कैसे लिपट गया,
हिम्मत करके तू उस जिन्न का कपाल त्याग दे,
वर्तमान ही है शाश्वत ये गीता में पढ़ा तो कर,
नस को जो दबा दे दर्द वो त्रिकाल त्याग दे,
बेशक है तेरे हुस्न पर लाखों युवा फिदा,
गर हुस्न का मद तुझे तो ये जमाल त्याग दे।
जमाल - खुबसूरत
त्रिकाल - भूत, भविष्य, वर्तमान
मृणाल - कमल का पुष्प
©harshit demon
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