किस जगह रख दूँ तेरी याद के चिराग को,
कि रोशन भी रहूँ और हथेली भी ना जले।
बुझा भी दो सिसकते हुए यादों के चिराग,
इनसे कब हिज्र की रातों में उजाला होगा।
लफ्ज़, अल्फाज़, कागज़ और किताब,
कहाँ-कहाँ नहीं रखता तेरी यादों का हिसाब।
नींद को आज भी शिकवा है मेरी आँखों से,
मैंने आने न दिया उसको तेरी याद से पहले।
हर तरफ जीस्त की राहों में कड़ी धूप है,
बस तेरी याद के साए हैं पनाहों की तरह।
©Dil Se Dil Tak
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here