Manish ghazipuri

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simple and normal boy and writer

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White पाप पुन्य का लेखा जोखा तुम ही रखना, तन मन धन का लेखा जोखा तुम ही रखना। अपना तो बस काम राह पर चलते रहना, राहों से पहचान बना कर तुम ही रखना। कहीं ठहरना, फिर चल देना आदत अपनी, और हवावों के जैसी कुछ फितरत अपनी। क्या खोया क्या पाया इतनी समझ कहां है, हानि लाभ का लेखा जोखा तुम ही रखना। दुख सुख का अनुमान लगा कर राह बदल लूं, तुफानों के डर से अपनी चाह बदल लूं। खेल रहा झंझावातो से निशि दिन प्रतिपल, परिणामो का लेखा जोखा तुम ही रखना। ©Manish ghazipuri

#मोटिवेशनल #sad_quotes  White पाप  पुन्य  का  लेखा  जोखा तुम ही रखना,
तन मन धन का लेखा जोखा तुम ही रखना।
अपना  तो  बस  काम राह पर चलते रहना,
राहों  से  पहचान  बना  कर तुम ही रखना।

कहीं ठहरना, फिर चल देना आदत अपनी,
और हवावों के जैसी कुछ फितरत अपनी।
क्या खोया क्या पाया इतनी समझ कहां है,
हानि लाभ का लेखा जोखा तुम ही रखना।

दुख सुख का अनुमान लगा कर राह बदल लूं,
तुफानों   के   डर   से   अपनी  चाह बदल लूं।
खेल  रहा  झंझावातो  से निशि दिन प्रतिपल,
परिणामो   का   लेखा जोखा  तुम  ही रखना।

©Manish ghazipuri

#sad_quotes

12 Love

White ज़िन्दगी भर चला, ज़िन्दगी के लिए, फिर भी सारा सफर, अधुरा रहा। ना ही तृष्णा मिटी, ना मिटी लालसा, एक पथ से, मै दुजे पे चलता रहा। हर गली, हर शहर, हर इक मोड़ पर, साथ में कुछ चले,कुछ गये छोड़ कर। सोचता ही रहा, जिन्दगी क्या बला, खुद से खुद का हर इक प्रश्न करता रहा। लौट कर फिर किसी ने,ना कुछ भी कहा, प्रश्न था जो मेरा, प्रश्न ही रह गया। इक किरन कोई,धुँधली सी दिख ना सकी, थी उजाले की आशा, भटकता रहा। ज़िन्दगी भर चला ज़िन्दगी के लिए, फिर भी सारा सफर, अधुरा रहा। मनीष गाजीपुरी ©Manish ghazipuri

#विचार #GoodMorning  White ज़िन्दगी   भर   चला,  ज़िन्दगी के लिए,
फिर   भी  सारा    सफर,  अधुरा   रहा।
ना  ही   तृष्णा  मिटी, ना  मिटी लालसा,
एक   पथ   से,  मै  दुजे  पे  चलता रहा।

हर गली,   हर शहर,  हर  इक  मोड़ पर,
साथ   में  कुछ  चले,कुछ गये छोड़ कर।
सोचता  ही  रहा,  जिन्दगी   क्या   बला,
खुद से खुद का हर इक प्रश्न करता रहा।

लौट  कर फिर किसी ने,ना कुछ भी कहा,
प्रश्न   था   जो   मेरा, प्रश्न   ही  रह  गया।
इक किरन कोई,धुँधली सी दिख ना सकी,
थी   उजाले  की   आशा, भटकता   रहा।

ज़िन्दगी  भर   चला   ज़िन्दगी   के  लिए,
फिर   भी    सारा   सफर,  अधुरा    रहा।

                                              मनीष गाजीपुरी

©Manish ghazipuri

#GoodMorning एहसास

16 Love

White कर रही अफसोस जाहिर,कातिल हवाऐं, माफीनामा लिख रही, काफिर हवाऐं। डालियां फिर क्या, तने से जुड़ सकेंगी, फिर रुदन क्यों, कर रही शातिर हवाऐं। फिर किसी अनुबंध की, बातें चलेंगी, फिर नये संबंध की, बातें चलेंगी। दस्तावेज़ो पर कलम, दस्तख़त करेगी, अब कभी मदहोश ना, होगी हवाऐं? ..…..…....….. मनीष तिवारी ©Manish ghazipuri

#शायरी #GoodMorning  White कर रही अफसोस जाहिर,कातिल हवाऐं,
माफीनामा    लिख    रही, काफिर हवाऐं।
डालियां   फिर   क्या, तने से जुड़ सकेंगी,
फिर   रुदन  क्यों, कर  रही शातिर हवाऐं।

फिर   किसी   अनुबंध   की,  बातें चलेंगी,
फिर   नये    संबंध    की,    बातें   चलेंगी।
दस्तावेज़ो   पर   कलम,  दस्तख़त  करेगी,
अब   कभी   मदहोश   ना,  होगी   हवाऐं?

                                 ..…..…....….. मनीष तिवारी

©Manish ghazipuri

#GoodMorning जाहिलो की टोली।

15 Love

White कर रही अफसोस जाहिर,कातिल हवाऐं, माफीनामा लिख रही, काफिर हवाऐं। डालियां फिर क्या, तने से जुड़ सकेंगी, फिर रुदन क्यों, कर रही शातिर हवाऐं। फिर किसी अनुबंध की, बातें चलेंगी, फिर नये संबंध की, बातें चलेंगी। दस्तावेज़ो पर कलम, दस्तख़त करेगी, अब कभी मदहोश ना, होगी हवाऐं? ..…..…....….. मनीष तिवारी ©Manish ghazipuri

#विचार #GoodMorning  White कर रही अफसोस जाहिर,कातिल हवाऐं,
माफीनामा    लिख    रही, काफिर हवाऐं।
डालियां   फिर   क्या, तने से जुड़ सकेंगी,
फिर   रुदन  क्यों, कर  रही शातिर हवाऐं।

फिर   किसी   अनुबंध   की,  बातें चलेंगी,
फिर   नये    संबंध    की,    बातें   चलेंगी।
दस्तावेज़ो   पर   कलम,  दस्तख़त  करेगी,
अब   कभी   मदहोश   ना,  होगी   हवाऐं?

                                 ..…..…....….. मनीष तिवारी

©Manish ghazipuri

#GoodMorning जाहिलो की टोली

12 Love

White बिन शब्दों के दर्द कह रहे, बिन आँसू हर मर्म कह रहे। घर की दीवारों की बाते, जाने कितनी बार सह रहे। बिन शब्दों के दर्द कह रहे। नींव की ईटो से जा पूछो, कैसे बोझ उठाते हैं। गुमनामी के घोर अन्धेरो, में भी फर्ज निभाते हैं। आँगन की दीवार ने पूछा, कैसे इतना भार सह रहे। बिन शब्दों के दर्द कह रहे। वैभव सारा देख रहा जग, परकोटे की दीपो से, नभचुम्मी मीनारे दीखती, चाँद सितारों के घर पे। निर्विकार औ अटल खड़ा हूँ। उम्मीदो में प्राण भर रहे। बिन शब्दों के दर्द कह रहे। ना पहचाने ये जग मुझको, भले ना कोई मान दे। इतिहासो में दर्ज नही हूँ, ना आशा सम्मान दे, "नीव का पत्थर" हूँ मैं यारो, हर युग का हम श्राप सह रहे। बिन शब्दों के दर्द कह रहे। बिन आँसू हर मर्म कह रहे। ©Manish ghazipuri

#alone_sad_shayri #विचार  White बिन  शब्दों के दर्द कह रहे,
बिन आँसू हर मर्म कह रहे। 
घर  की  दीवारों  की  बाते,
जाने  कितनी  बार सह रहे।
बिन शब्दों के दर्द कह रहे।
नींव  की  ईटो से जा पूछो,
कैसे    बोझ    उठाते    हैं।
गुमनामी   के  घोर अन्धेरो,
में   भी   फर्ज   निभाते  हैं।
आँगन की  दीवार ने  पूछा,
कैसे  इतना  भार  सह  रहे।
बिन शब्दों  के  दर्द कह रहे।
वैभव  सारा  देख रहा  जग,
परकोटे    की    दीपो     से,
नभचुम्मी   मीनारे   दीखती,
चाँद  सितारों   के    घर  पे।
निर्विकार औ अटल खड़ा हूँ।
उम्मीदो   में   प्राण  भर  रहे।
बिन   शब्दों  के  दर्द कह रहे।
ना  पहचाने  ये  जग  मुझको,
भले    ना    कोई    मान    दे।
इतिहासो    में    दर्ज   नही हूँ,
ना     आशा      सम्मान     दे,
"नीव  का   पत्थर"  हूँ मैं यारो,
हर  युग का  हम श्राप सह रहे।
बिन  शब्दों  के  दर्द  कह रहे।
बिन  आँसू  हर  मर्म कह रहे।

©Manish ghazipuri

White बोल उठा अन्तर्मन घायल, टूटा दर्पण बोल उठा। हूक उठी सीने में जब जब, तन मन सारा डोल उठा। आँख से आँसू ऐसे बरसे, जैसे सावन बरस रहा हो। प्रेम की पाती में लगता है, जैसे कोई तरस रहा हो। शब्द शब्द पर भारी पड़ता, एक शब्द कुछ बोल उठा। छिपी हुई पीड़ा से व्याकुल, वह मुखरित सब बोल उठा। बहुत जतन पर छिपा न पाया, घर आँगन सब बोल उठा। तारो ने सब कुछ देखा पर, चाँद गगन का बोल उठा। बोल उठा अन्तर्मन घायल, टूटा दर्पण बोल उठा। हूक उठी सीने में जब जब, तन मन सारा डोल उठा। मनीष गाजीपुर ©Manish ghazipuri

#विचार #moon_day  White बोल उठा अन्तर्मन घायल,
टूटा     दर्पण  बोल   उठा।
हूक उठी सीने में जब जब,
तन  मन  सारा  डोल उठा।

आँख  से  आँसू  ऐसे बरसे,
जैसे  सावन  बरस रहा हो।
प्रेम  की  पाती में लगता है,
जैसे   कोई   तरस  रहा हो।
शब्द  शब्द पर भारी पड़ता,
एक  शब्द  कुछ बोल उठा।
छिपी  हुई पीड़ा से व्याकुल,
वह मुखरित सब बोल उठा।

बहुत जतन पर छिपा न पाया,
घर  आँगन   सब  बोल  उठा।
तारो  ने  सब  कुछ  देखा पर,
चाँद   गगन  का  बोल   उठा।
बोल   उठा  अन्तर्मन  घायल,
टूटा    दर्पण    बोल     उठा।
हूक  उठी  सीने  में जब जब,
तन  मन   सारा   डोल  उठा।

                                 मनीष गाजीपुर

©Manish ghazipuri

#moon_day

17 Love

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