शायरी: अर्जुन की उलझन, कृष्ण का ज्ञान
मैं भी अर्जुन सा खड़ा हूँ, सवालों की बौछार है,
किससे कहूँ, किससे छुपाऊँ, भीतर ही तकरार है।
रिश्तों की रणभूमि में, हर तरफ बस शोर है,
मन डगमगाए हर कदम, क्या सही, क्या और है?
तभी कान्हा मुस्काए, बोले— "छोड़ ये भय का जाल,
जो तेरा है, वो मिलेगा, कर्म कर, मत देख परिणाम।"
ध्यान दिया जब वचनों पर, संशय सारे मिट गए,
जो सोचा था मुश्किल कल तक, कदमों में ही गिर गए।
अब जो भी हो, बस चलूँगा, गीता का ये ज्ञान लिए,
हर कर्म में कृष्ण मेरे, जीवन का वरदान लिए।
©Shayri ka keeda
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