आज अंततोगत किञ्चित सा ही सही,
किंतु कुछ कहना चाहता हूं...
बड़ी मुश्किल से एक घरौंदा तैयार किया था तेरे हृदय में,
जब रहने लगा
तब अचानक से
न जाने कहां से...
एक अजनबी जबरन घुस आया,
मैंने तनिक विरोध किया भी,
कतिपय संघर्ष भी किया,
किन्तु जब तुम ने कहा कि रहने दो उसे यहां!
ये घर तुमने बनाया अवश्य है,
किन्तु तुम्हारा है नहीं...कदाचित उसी का है।
उस दिन तुम्हारे मुंह से
ये बात सुनकर बहुत रोया था,
और तिनका तिनका बिखरा भी था
किन्तु वो तूफान वहीं नहीं थमा
मेरे चाहने वाले ने मेरा सामान और बोरिया बिस्तर
मुझे थमाते हुए कहा कि घर के बाहर, द्वार पर
अपना सामान रख लो!
बात जरा ये है कि भीतर अब जगह कम है।
अब उसी घर की चौखट पर पड़ा हूं
जो कभी अपने हाथों से बनाया था,
जिसके बाहर कभी मेरा ही नेम प्लेट था,
अहा... अब नेम प्लेट बदल गई है
पुरानी वाली की जगह नई ने ली है
जानती हो...कल रात के तूफान में
मेरी जर्जर टटिया उड़ गई थी
और मैं बिना बताए ही,
बहुत मजबूर होकर,
अपना सारा सामान समेट कर, तुम्हारी चौखट से
अब कहीं दूर चला आया हूं...
पता नहीं कहां? पर वो वादा अब भी है कि
फिर मिलूंगा... कदाचित किसी और जन्म में।
©Harendra Singh Lodhi
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