सांस लेने में भी, अब तो परेशानी हो चुकी है
खुद से ही जैसे, नाफरमानी हो चुकी है
कोई तो मुझे इस बेगैरत ज़िंदगी से छुटकारा दिलवाओ
ज़िंदगी ज़ालिम ऐसे हो गई जैसे, दुश्मनी पुरानी हो चुकी है
चांदी आ गई बालो में बुढ़ापे सी, मेरी जवानी हो चुकी है
रूह भी मेरी अब ताकत ए जिस्मानी खो चुकी है
ज़हन में हर सोच मेरी जैसे, मुर्दे जैसी जलती है
शायद अब तो सोच भी मेरी, शमशानी हो चुकी है
इतना बर्बाद हो चुका हूं, कि बरबादी भी जैसे खानदानी हो चुकी है
मुसीबतें जैसे, हर वक्त पिया जाने वाला पानी हो चुकी हैं
जकड़ा जा चुका हूं हालात नाम के अजगर की पूंछ में जैसे
शायद अब ख़त्म मेरी कहानी हो चुकी है,, ख़त्म मेरी कहानी हो चुकी है
खत्म मेरी कहानी हो चुकी है।
©Nitin sharma
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