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जुबां में है चुभन कांटो के जैसी...हिफाजत भी जरूरी है, आखिर गुलाब हूँ मैं
दुबली पतली काया में, इक युग धरती पर आया था अपनी दृढ़ शक्ति से जिसने, शाही तख्त हिलाया था अस्त्र कोई न शस्त्र कोई, न वार न कोई प्रहार किया सत्य अहिंसा के बलबूते,भारत आजाद कराया था ©pratibha
pratibha
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अवसादों से घिरे हुए यहां, कितने चेहरे देखे हैं पहले सपने देखे फिर, सपनों पर पहरे देखे हैं ©pratibha
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तू ने इतने अंधेरे में रखा है कि अब रोशनी चुभती है ©pratibha
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तेरी इक मुस्कान के सदके मेरी जान दो जहा़ं कुरबान ©pratibha
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