ये जो मेरा स्त्री श्रृंगार है।
इक नकाब बस यार है,
अंदर पीर लहर दबाकर,
होंठो पर हंसी सजाकर,
जीवन खींचती पतवार है।
ये जो मेरा स्त्री श्रृंगार है,।।
मेरे चेहरे की रौनक,
मेरे होंठो की चहक
रहस्यों की कथाकार है
ये सब इक नाटककार है
ये जो मेरा स्त्री श्रृंगार है।
दर्द को मुस्कान बनाकर,
चित्रकारी की परत चढ़ाकर,
ये ठगने में फनकार है।
ये जो मेरा स्त्री श्रृंगार है।।
जो दिखे है मिथ्या सजकर,
वो गुप्त द्वंद की झंकार है,
मुस्कान समेटे रुदन स्वर,
बस तस्वीर खींचना भार है।
ये जो मेरा स्त्री श्रृंगार है।।
©Pragya Amrit
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