पहले नहीं लगता था, कि एक ख़्वाब बनोगे तुम
अब ये लगता है, जैसे एक बिन खुली किताब हो तुम !
मन की क्यारी मैं एक अजीव खुशबू सी हो तुम ,
अपनी चुप्पी का एक गुलाब हो तुम !
वैसे मेरी मखामोशी में थोड़ी सी तो हो तुम !
हां सच मैं बेहिसाब हो तुम !
मेरे दिल ने,जो कभी भेजा था,
शायद उस ख़त का अनकहा जवाब हो तुम!
©दिवाकर की डायरी
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