Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma

Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma

तस्वीरें बदलने से किस्मत नहीं बदलती है। हां यह ज़रूर है की हर एक तस्वीर कुछ न कुछ कहती ज़रूर है। केवल नज़रिए की बात है।✍️🙏🙏🙇

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#शायरी #ग़ज़ल #poetryunplugged

#poetryunplugged #ग़ज़ल 'दर्द भरी शायरी' Adv. Rakesh Kumar Soni (अज्ञात) @abhishek sharma RAVINANDAN Tiwari दुर्लभ "दर्शन" Rekha💕Sharma "मंजुलाहृदय"

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#भक्ति #Sadmusic

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White चुपचाप की चाहत बिना कहे, बिना पूछे तुम्हारे साथ चल पड़ते हैं, हमारी चाहत ही कुछ ऐसी है, जो बस तुम्हारे दिल तक पहुँचते हैं। शायद इसे ही प्यार कहते हैं, जहां हर कदम साथ हो और हर ख्वाहिश तुम्हारे नाम होती है। ©Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma

#शायरी #Sad_Status  White चुपचाप की चाहत

बिना कहे, बिना पूछे तुम्हारे साथ चल पड़ते हैं,
हमारी चाहत ही कुछ ऐसी है, जो बस तुम्हारे दिल तक पहुँचते हैं।
शायद इसे ही प्यार कहते हैं,
जहां हर कदम साथ हो और हर ख्वाहिश तुम्हारे नाम होती है।

©Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma

#Sad_Status चुपचाप की चाहत बिना कहे, बिना पूछे तुम्हारे साथ चल पड़ते हैं, हमारी चाहत ही कुछ ऐसी है, जो बस तुम्हारे दिल तक पहुँचते हैं। शायद इसे ही प्यार कहते हैं, जहां हर कदम साथ हो और हर ख्वाहिश तुम्हारे नाम होती है। @Ashutosh Mishra बादल सिंह 'कलमगार' @advocate SURAJ PAL SINGH @Frame Matter @Author kunal

18 Love

White ग़ज़ल: आदतें हैं छूटती नहीं, चाहे कितनी कोशिश कर लो, अनमोल चीज़ें समझ में आएं, ये सभी से चाह कर लो। सेवा भी मुफ़्त कब तक, कोई दिल से करे, भूख का सवाल है, इसे अब तो समझ कर लो। मुफ़लिसी में भूख का दर्द कोई सह पाता नहीं, पैसों के बिना कोई रिश्ता चल पाता नहीं। ज़िंदगी की हर ख़्वाहिश पैसों पर ठहरती है, वरना ख़ुशियों की राह तो कहीं जा पाती नहीं। इन अशआर में ज़िंदगी का हर रंग सिमट आया है, सच कहें तो यही हकीकत समझ में आता नहीं। ©Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma

#शायरी #good_night  White 

ग़ज़ल:

आदतें हैं छूटती नहीं, चाहे कितनी कोशिश कर लो,
अनमोल चीज़ें समझ में आएं, ये सभी से चाह कर लो।

सेवा भी मुफ़्त कब तक, कोई दिल से करे,
भूख का सवाल है, इसे अब तो समझ कर लो।

मुफ़लिसी में भूख का दर्द कोई सह पाता नहीं,
पैसों के बिना कोई रिश्ता चल पाता नहीं।

ज़िंदगी की हर ख़्वाहिश पैसों पर ठहरती है,
वरना ख़ुशियों की राह तो कहीं जा पाती नहीं।

इन अशआर में ज़िंदगी का हर रंग सिमट आया है,
सच कहें तो यही हकीकत समझ में आता नहीं।

©Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma

ग़ज़ल: आदतें हैं छूटती नहीं, चाहे कितनी कोशिश कर लो, अनमोल चीज़ें समझ में आएं, ये सभी से चाह कर लो। सेवा भी मुफ़्त कब तक, कोई दिल से करे,

18 Love

#विचार #love_shayari  White आज़ मैंने एक बच्चे को बाहर जाते हुए और पीछे मुड़-मुड़ कर देखते हुए देखा, तो मुझे अपने बचपन की बात याद आई। मैंने सोचा, इसे साझा कर दूं, क्योंकि हो सकता है कि आपने भी ऐसा किया हो। जब हम बचपन में अंधेरे से डरते थे, और हमें रात को किसी काम से बाहर भेजा जाता था, या फिर किसी पड़ोसी के घर पर खेलते-खेलते देर हो जाती थी और अंधेरा छा जाने के कारण डर लगने लगता था, लेकिन घर भी तो जाना था।

तो हम अपने ताऊजी, मां, काकी, या दादी से कहते थे कि "घर छोड़ कर आ जाओ।" और वे कहते, "हां, चलो छोड़ आते हैं।" जब घर का मोड़ आता तो वे कहते, "अब चल जा," लेकिन डर तो लग रहा होता था। तो हम कहते, "आप यहीं रुकना," और वे बोलते, "मैं यहीं हूँ, तेरा नाम बोलते रहूंगा।"

जब तक वे हमारा नाम लेते रहते थे और जब तक हम घर नहीं पहुंच जाते थे, हमें यह विश्वास होता था कि वे हमारे साथ ही हैं, भले ही वे घर लौट चुके होते। लेकिन जब तक हमारा दरवाजा नहीं खुलता था, तब तक डर लगता था कि कोई हमें पीछे से पकड़ न ले। और जैसे ही दरवाज़ा खुलता, हम फटाफट घर के अंदर भाग जाते थे।

फिर, जब घर के अंधेरे में चबूतरे से पानी लाने के लिए कहा जाता था, तो हम बच्चों में डर के कारण यह कहते, "नहीं, पहले तू जा, पहले तू जा।" एक-दूसरे को "डरपोक" भी कहते थे, लेकिन सभी डरते थे। पर जाना तो उसी को होता था, जिसे मम्मी-पापा कहते थे। वह डर के मारे कहता, "आप चलो मेरे साथ," और वे कहते, "नहीं, तुम जाओ, तुम तो मेरे बहादुर बच्चे हो। मैं तुम्हारा नाम पुकारूंगा।" और फिर जब वह पानी लेकर आता, तो वे कहते, "देखो, डर नहीं लगा न?"

लेकिन सच कहूं तो डर जरूर लगता था। पर यही ट्रिक हम दूसरे पर आजमाते थे। आज देखो, हम और हमारे बच्चे क्या डरेंगे, वे तो डर को ही डरा देंगे! 😂 बातें बहुत ज्यादा हो गई हैं, कुछ को फालतू भी लग सकती हैं, लेकिन हमारे बचपन में हर घर में हर बच्चे के साथ यही होता था। अब आपकी प्रतिक्रिया देने की बारी है। क्या आपके साथ भी यही हुआ 

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©Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma

कैप्शन में पढ़े 🤳 आज़ मैंने एक बच्चे को बाहर जाते हुए और पीछे मुड़-मुड़ कर देखते हुए देखा, तो मुझे अपने बचपन की बात याद आई। मैंने सोचा, इसे साझा कर दूं, क्योंकि हो सकता है कि आपने भी ऐसा किया हो। जब हम बचपन में अंधेरे से डरते थे, और हमें रात को किसी काम से बाहर भेजा जाता था, या फिर किसी पड़ोसी के घर पर खेलते-खेलते देर हो जाती थी और अंधेरा छा जाने के कारण डर लगने लगता था, लेकिन घर भी तो जाना था। तो हम अपने ताऊजी, मां, काकी, या दादी से कहते थे कि "घर छोड़ कर आ जाओ।" और वे कहते, "हां, चलो छोड़ आत

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#कविता  White ढूंढ रही हैं नजरे शायद अभी दिख जाएं। 
आया है फिर राखी का त्यौहारकहीं किसी बहन को बिछड़ा भाई तो किसी भाई को बिछड़ी बहन मिल जाएं।
माना राखी महंगी और रिश्ते सस्ते हों गए है। पर कभी तो बाहरी दिखावा छोड़ मन की आंखों से मेल हटा कर मिल लिया करो। जानें कब किसी की अगली सुबह आंख न खुले इसलिए जब याद आए तब ही बात कर लिया करों।

©Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma

बार कोई त्यौहार आता है, पर तू नज़र नहीं आता है। इस बार भी राखी का त्यौहार आया है, पर यादों को कोई मिटा नहीं पाया है। पूजा की थाली सजाती हूँ हर बार, भिन्न-भिन्न राखियां और पसंदीदा मिठाई करती हूँ तैयार। मन में एक दर्द और आँखों में आँसू की धार,

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