आज जिंदगी की कीमत समझ आई,
रोते, बिलकते, दौड़ते, बेबस लोगों को देख आँखे भर आई,
समूचित संसार के आधा कटोरी विषाणु ने क्रूरता की नदिया बहाई,
ऑक्सीजन की कमी से लोगों ने जान गंवाई,
मानो समुंदर के होते हुए भी, पानी की एक बूँद हाथ ना आई,
पन्नी में बंद ढेर है लाशों का, श्मशान की भूमी भी है आज थरथराई,
इन नम आँखों से कांपते हुए चिताग्नि दी, फिर कहीं जाके जिंदगी की कीमत समझ आई !!
©Vishal Sharma
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