आंखों में एक धुआं सा छाया है।
नज़र उठाकर देखा पर कुछ नज़र ना आया है।
हर रास्ते से पूछूं पता मैं अपनी मंज़िल का,
हर रास्ते ने मगर मुझको ठुकराया है।
कभी तो मिलेगा वो रास्ता,
रखता होगा जो मेरी मंज़िल से वास्ता।
दे दी है तसल्ली इस दिल को,
दर्द को इसमें कहीं दफ़नाया है।
मिला देना मुझे मेरी मंज़िल से ऐ! ख़ुदा
इसी ख़्वाहिश़ से ये हाथ उठाया है।
तुझपे ऐतबार तो नहीं मुझको पर शायद! है भी,
क्या है कुछ समझ न आया है!
रहमों करम पर तेरे चलती है ये दुनियां, यूं सुना है मैंने!
पर जाना नहीं क्या होता तेरी रहमत का साया है।
खो जाऊं ना कहीं मंज़िल की इस तलाश में,
दे दे इक सदा के तूने मुझे अपनाया है।
©Jupiter and its moon
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