White बागबां अब अकेला हैं, उम्र के इस मोड़ पर !!सब परिंदे उड़ गए हैं, धीरे-धीरे छोड़कर,
चमन सूनसान है अब, साज को तोड़कर।
बागबां खड़ा है, पेड़ों की छांव तले,
पर साया भी रूठ गया, वक्त की चाल चले।
उम्र की ढलान पर, अकेलेपन का पहरा,
हर सांस में गूंजता है यादों का गहरा।
जहां कभी था चहचहाट का समां,
अब खामोशी का है वहां नया जहां।
ख्वाबों के पत्ते झड़ गए पतझड़ की तरह,
बचपन की खुशियां बिछड़ गई उम्र भर।
अब तो बस यादें हैं, बीते दिनों की,
और आंखें नम हैं, अपनों के गम की।
पर बागबां का हौसला, पत्थर से कम नहीं,
हर दर्द सह लेता है, कोई गम नहीं।
परिंदे भले ही उड़ गए, पर घोंसले हैं याद,
और उम्मीदें कहती हैं, आएगा फिर कोई दिन खास।
©Writer Mamta Ambedkar
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