गिर गिर कर उठने की कोशिश गिर गिर कर संभलने की कोश | हिंदी कविता

"गिर गिर कर उठने की कोशिश गिर गिर कर संभलने की कोशिश, हर ठोकर से कुछ सीखने की कोशिश। ठहराव में जोश जगाने की कोशिश, हर हार में जीत पाने की कोशिश। राहें कठिन हैं, पत्थर भी बहुत, फिर भी बढ़ते जाना, रुकना नहीं। अंधेरों में जलती एक उम्मीद की लौ, राह में रोशनी करना कभी मना नहीं। गिरा तो सही पर उठना मुझे आता है, संघर्ष में तपना मुझे भाता है। सपने अधूरे, मगर जज्बा पूरा है, मंज़िल पाने का इरादा मजबूत, और दिल अभी भी सच्चा है। ©kavi Abhishek Pathak"

 गिर गिर कर उठने की कोशिश

गिर गिर कर संभलने की कोशिश,
हर ठोकर से कुछ सीखने की कोशिश।
ठहराव में जोश जगाने की कोशिश,
हर हार में जीत पाने की कोशिश।

राहें कठिन हैं, पत्थर भी बहुत,
फिर भी बढ़ते जाना, रुकना नहीं।
अंधेरों में जलती एक उम्मीद की लौ,
राह में रोशनी करना कभी मना नहीं।

गिरा तो सही पर उठना मुझे आता है,
संघर्ष में तपना मुझे भाता है।
सपने अधूरे, मगर जज्बा पूरा है,
मंज़िल पाने का इरादा मजबूत, और दिल अभी भी सच्चा है।

©kavi Abhishek Pathak

गिर गिर कर उठने की कोशिश गिर गिर कर संभलने की कोशिश, हर ठोकर से कुछ सीखने की कोशिश। ठहराव में जोश जगाने की कोशिश, हर हार में जीत पाने की कोशिश। राहें कठिन हैं, पत्थर भी बहुत, फिर भी बढ़ते जाना, रुकना नहीं। अंधेरों में जलती एक उम्मीद की लौ, राह में रोशनी करना कभी मना नहीं। गिरा तो सही पर उठना मुझे आता है, संघर्ष में तपना मुझे भाता है। सपने अधूरे, मगर जज्बा पूरा है, मंज़िल पाने का इरादा मजबूत, और दिल अभी भी सच्चा है। ©kavi Abhishek Pathak

#Sangarsh #poem

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