अभी तूने उसे उसे परखा नहीं है
वो पागल है मगर इतना नहीं है
वो जुगनू है यहीं खूबी है उसकी
चरागों की तरह बुझता नहीं है
मैं क्यों रक्खूँ हिसाब अपनी वफा का
मोहब्बत है कोई सौदा नहीं है
उसे दौलत ने अन्धा कर दिया है
हकीकत में वो नाबीना नहीं है
हवा के शहर में यूं सर उठाना
चरागों के लिए अच्छा नहीं है
उसे में शायरी कैसे सिखाऊ
जो अन्दर से अभी टूटा नहीं है
समर मंगलौरी
©umair Samar
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