सुर्ख गालों पर पसीना, जैसे फागुन का महीना
ऐसी रिम-झिम नही देखी, ऐसा सावन नहीं देखा।
ऐसी आँखें नहीं देखी, ऐसा काजल नहीं देखा
ऐसा जलवा नहीं देखा, ऐसा चेहरा नहीं देखा।
तेरे कंगन का खनकना , वो पाज़ेब की छम-छम,
ये सुरीली सी मौसिक़ी ऐसा करिश्मा नहीं देखा।
©K V Dalwadi
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