कितनी ज्यादा है प्यास इसे, कितनी नदियों का संगम है | हिंदी कविता Video

"कितनी ज्यादा है प्यास इसे, कितनी नदियों का संगम है, फिर सागर के मन का कोलाहल, क्यूं इतना अधिक विहंगम हैं। देखा जब अडिग पर्वतों को, कितनी नदियों का उद्गम है, फिर पाना इसका आलिंगन, क्यूं इतना ज्यादा दुर्गम है। एक वृक्ष फलों से आच्छादित, जो मां की ममता के सम है, फिर चाहे जितनी चोट सहे, इसे दर्द से अपने न गम हैं। हूं सोच रही, है कौन शिष्ट, है कौन इन सबमें विशिष्ट, गर बूझ सको बतलाओ न, है कौन तेरे मन में प्रविष्ट।। 🍁🍁🍁 ©Neel "

कितनी ज्यादा है प्यास इसे, कितनी नदियों का संगम है, फिर सागर के मन का कोलाहल, क्यूं इतना अधिक विहंगम हैं। देखा जब अडिग पर्वतों को, कितनी नदियों का उद्गम है, फिर पाना इसका आलिंगन, क्यूं इतना ज्यादा दुर्गम है। एक वृक्ष फलों से आच्छादित, जो मां की ममता के सम है, फिर चाहे जितनी चोट सहे, इसे दर्द से अपने न गम हैं। हूं सोच रही, है कौन शिष्ट, है कौन इन सबमें विशिष्ट, गर बूझ सको बतलाओ न, है कौन तेरे मन में प्रविष्ट।। 🍁🍁🍁 ©Neel

#विशिष्ट 🍁

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