"आज शाम ये कौन चित्रकार उतरा है ज़मीं पर ,किस कवि की ये कल्पना है,
रचाई है सुँदर रँगों से धरती, क़ुदरत की कितनी अद्भुत अल्पना है,
महकती फ़िज़ाएँ बयाँ कर रही हैं , प्रकृति का सुँदर वर्णन,
किसने गढ़ा है ये सुँदर नज़ारा, किसने किया है ये अनोखा चित्रण,
मन कहता है रच दूँ एक खूबसूरत कविता ,इस रचना पर,
किसकी न नज़र फिसले , कौन न आकर ठहर जाए यहाँ पर,
कैसे समाएगी प्रकृति की ये इतनी सुंदरता , चन्द पंक्तियों में,
खो जाएगी क़लम लिखते लिखते , इन अनुपम वादियों में,
कुछ पल और निहार लूँ , कुछ लम्हे और जी लूँ इस अद्भुत धरा पर,
बसा लूँ एक खूबसूरत सा आशियाँ , इसी ज़मीं पर इसी गुलसिताँ पर।।
-पूनम आत्रेय
©poonam atrey
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