White उड़ती तितलियों से सबक इतना तो सीखा था,
उड़ान कितनी भी ऊँची हो, ज़मीं पर ही उतरना।
कितना कुछ सिखाती है वक़्त की पाठशाला,
सफलता के मुकाम पर भी ख़ुद विनम्र रहना।
कुछ लोग हवा में खोकर ज़मीन ढूंढते हैं,
बादलों में खोकर खुद को आसमां समझते हैं।
पर जब भ्रम टूटता है, वक्त तलवार-सी चलती,
टुकड़े-टुकड़े होकर, आसमां से जमीं गिरते हैं।
उड़ो पतंग-सी, मचलो पतंग-सी, घूमो पतंग-सी,
पर इशारे पर ही रहना, बंधी हो जिस डोर से।
कोई अहंकार नहीं रखना मन में उड़ान की,
इशारे पर ही चलना, जुड़ी रहना उस डोर से।
थामे रखा है एक डोर, तुम्हें गिरने नहीं देगा,
उड़ो, आसमां को चीर, डोर तुम्हें गिरने नहीं देगा।
उत्साहित रहना और जीवन से सीखते रहना,
बिखरे कभी तो उस डोर को थामे रखना।
मत समझो कि कोई तुम्हें रोक रहा है,
अहंकार में आकर कभी डोर मत छोड़ना।
जो तुम्हें संभाल रहे हैं, उनका भी मान रखना,
उनकी भावनाओं को दिल में बसाए रखना।
जब तक वह डोर तुम्हारे साथ रहेगी,
हर मुश्किल में संतुलन बनाए रखेगी।
पर अगर अभिमान से हाथों की पकड़ ढीली होगी,
तब गिरकर समेटने को सिर्फ़ तन्हाई मिलेगी।
इसलिए उड़ो, मगर अपनी हद पहचान के,
सपनों के आसमां में पर फैलाकर, मगर जान के।
क्योंकि हर उड़ान का एक मुकाम होता है,
हर चढ़ते सूरज को एक दिन ढलना होता है।
पर ढलते सूरज की भी एक पहचान होती है,
नई सुबह की उसकी यही तो जान होती है।
रात चाहे अंधेरी हो, सवेरा फिर आता है,
हर मुश्किल के बाद एक आसान होता है।
मंज़िलों तक पहुँचने का यही दस्तूर है,
जो टिके राहों पर, उसका ही सुरूर है।
संघर्ष के आँधियों में जो खुद को समेटता है,
अगली उड़ान के लिए वही तैयार होता है।
©theABHAYSINGH_BIPIN
सही कहा भाई