क्या मजबूरी है कि टूटा हुआ ख़्वाब रखना पड़ता है
यही वजह हैं कि आँखों मे सैलाब रखना पड़ता है
आदमी जिये जा रहा है सालों के हिसाब से ज़िन्दगी
मुझे तो पहर दर पहर का हिसाब रखना पड़ता है
इस दुनिया को इजाज़त है कई सवाल छोड़ देने की
एक मैं हूँ जिसे हर सवाल का जवाब रखना पड़ता है
मैंने तो रखा हुआ है अपना एक ही चेहरा सबके लिए
और दुनिया को हर एक के लिए नकाब रखना पड़ता है
©Ks Vishal
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