लिखूँ मैं शब्द कितने ही पर उसका सार हैं श्री राम
कहानी है भले मेरी मगर किरदार हैं श्री राम
वो मेरे दुःख में रोते हैं वो मेरे सुख में हँसते हैं
मैं उनको अपना कहता हूँ मेरा परिवार हैं श्री राम
कहीं पर जल, कहीं अग्नि, कहीं पृथ्वी कहीं आकाश
मैं जिसमें देखना चाहूँ वही आकार हैं श्री राम
अगर दुनिया ये नदिया है अगर जीवन ये नैय्या है
अगर नैय्या भँवर में है तो फिर पतवार हैं श्री राम
मेरी दृष्टि उन्हें देखे मेरी जिव्हा उन्हें गाये
मैं अपने पाँव पर हूँ किंतु मेरा आधार हैं श्री राम
मेरा हर वाक्य उनका है मेरी हर बात है उनकी
मेरी बाहर की दुनिया से मेरा व्यवहार हैं श्री राम
©Ks Vishal
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