White ऐ मेरे हमनशीं चल कहीं और चल..., इस चमन में अ | हिंदी Poetry

"White ऐ मेरे हमनशीं चल कहीं और चल..., इस चमन में अब अपना गुज़ारा नहीं..! बात होती गुलों तक तो सह लेते हम.., अब तो कांटों पर भी हक़ हमारा नहीं..! जाने किसकी लगन किसकी धुन में मगन.., जा रहे थे हमें मुड़ के देखा तक नहीं..., हमने आवाज़ पर उनको आवाज़ दी..., और वो कहते हैं हमको पुकारा नहीं..! ©Arish"

 White ऐ मेरे हमनशीं चल कहीं और चल...,
इस चमन में अब अपना गुज़ारा नहीं..!

बात होती गुलों तक तो सह लेते हम..,
अब तो कांटों पर भी हक़ हमारा नहीं..!

जाने किसकी लगन किसकी धुन में मगन..,
जा रहे थे हमें मुड़ के देखा तक नहीं...,

हमने आवाज़ पर उनको आवाज़ दी...,
और वो कहते हैं हमको पुकारा नहीं..!

©Arish

White ऐ मेरे हमनशीं चल कहीं और चल..., इस चमन में अब अपना गुज़ारा नहीं..! बात होती गुलों तक तो सह लेते हम.., अब तो कांटों पर भी हक़ हमारा नहीं..! जाने किसकी लगन किसकी धुन में मगन.., जा रहे थे हमें मुड़ के देखा तक नहीं..., हमने आवाज़ पर उनको आवाज़ दी..., और वो कहते हैं हमको पुकारा नहीं..! ©Arish

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