"वो जो इतराके
मिला करती थी हर बार
जहाँ की सारे रंगों मैं
कल मिली तोह उसने
सफ़ेद लिवास औढ़े हुए
सुनाने लगी जिंदगानी की
सारे अनकही अनसुनी कहानी
आँखें जो हमेसा
गुरुर मैं चहकते थे
देखि आज तोह नम थे
उदासियों की रंगों मैं
सायद तलाशते होंगे
नायाब उम्मीदें जो फिर
मिला सके उन्हें गुरुर से
ये खाली पेट ये खाली जिंदगी
ये गम ये दर्द ये आंसू सायद सारे
दवा हैँ जिंदगी की जो
बार बार यही चीखते होंगे
यहाँ कुछ भी टिकाऊ नहीं
मेरी जान
ये घमंड ये गुरुर
बस मन और पेट भरजाने
पर पालने की एक प्रक्रिया हैँ
जिसे तुम बहेम कह सकती हो
©Nibedita behera
"