White हम ये किस दौर में हैं
सब अपनी होड में हैं
अनायास ही मांग रहे
इनकी भूख और में हैं
इन सबमें पिस रही ये
मेरी मासूम सी लेखनी
जिसकी स्याही सूखी
पर तेजस का प्रतीक है
बिजलियां कडकती हैं
चांदनी में चारों ओर
उजालों को बिखेरती हैं
संयम सी प्रतीत होती
पर सुनो तो शिल्पा
ये रोज की आवाजाही
ख्यालों में ख्याल का आना
कुछ कुरेदकर और
चले जाना, हां यै
आखिर कब तक चलेगा
कटाक्ष लिखा नहीं जाता
सत्यता में जिया नहीं जाता
चलते चलते थक गई हूं
समाज के दर्पण को उचित
या अनुचित कह सकूं
उसके लिए बचपन से ही
हम सब मौन रहे
कर्तव्य है जिम्मेदारी भी
इन सबसे इतर फिर
वहीं अटके पडें है कि
हम ये किस दौर में हैं
©Shilpa Yadav
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