मस्तिष्क में उपजे शब्दों से..इन पन्नों को सँवारना चाहता हूँ,
कुछ अलंकारिक शब्दों से अलंकृत कर..अपनी कविता को निखारना चाहता हूँ,
जिसमें हर रस का मिश्रण हो..प्रफुल्लित मन हर एक क्षण हो,
इर्ष्या, द्वेष, अहंकार ना हो..सच्चाई की हार ना हो,
एकाग्र मन हो...ऐसे वाक्यों को स्वीकारना चाहता हूँ,
अपनी स्वरचित कविता को और भी ज्यादा निखाराना चाहता हूँ।।
©Rajesh Tiwari
और निखाराना चाहता हूँ
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