रचना दिनांक १७ मार्च २०२५,
वार सोमवार
समय सुबह पांच बजे
्््
्भावचित्र ्
् ्निज विचार ्
्शीर्षक ्
् लफ्ज से शबद बने ,
और तरन्नुम से तबर्रुक बने,।
्््
मजलिस ऐ सुकुन वो लम्हे,
लफ्जो के ऐसे गुज़रे,,
मानो हम तराशते रहे
अल्फाज़ नगीना दिलों के , ।१।
ज़िगर से लहू में इन रगो के ,
सांजिन्दें एकतारे में सूरनाद ,,
नात, नज़्म, अल्फाज़, शेर, शायरी, में,।२।
तन का शिकंजा रुह से रुह में ,,
रुबरु होते अपने ख्यालों में ऐसे खोये ,।३।
मानो ख्याल में रहना ही,,
जिंदगी का तकल्लुफ आनंद है ।४।
डुबकर हम खो गये,
वो तेरे सजदे में नेमत में,।५।
एक स्वर पुकार नाद,
प्रेम से अन्तर्मन में,,
वो अपने ही हालात से,
नामालूम तेरी इबादत में ।६।
्कवि शैलेंद्र आनंद
©Shailendra Anand
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