"हर ओर अब सफ़र इक आसेब कर रहा है
दुनिया सहम रही है इंसान डर रहा है
ख़ामोश आस्माँ तो, सहमी सी है ज़मीं भी
इक हश्र देख घर-घर, घर आज कर रहा है
चुप-चाप मौत आई जो राह-ए-ज़िन्दगी में
धड़कन सिमट रही डर ज़ेहन में भर रहा है
आबाद शहर वीरान हुआ गुमनाम हुआ है
वीराँ करने वाला आबाद-ओ-मशहूर हो रहा है।।
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©एक अजनबी
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