"सूर्यास्त होते ही सभी पखेरू
अपने घोंसलों की ओर उड़ान
भरने लगे।बिल्डिंग्स पर अँधेरे
की कालिमा छाने लगी लगी।
और अर्धचंद्र अपनी चाँदनी
दिखाने को आतुर होने लगी।
छत पर खड़ी मैं ये नजारा
देख रही थी कि अचानक
मैं गुनगुनाने लगी-----
आधा है चंद्रमा रात आधी,
रह ना जाए तेरी मेरी बात
आधी- मुलाकात आधी--
©shashi kala mahto
"