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*माँ*
माता के जैसा नहीं,जग में कोई और।
खुद भूखी प्यासी रहे, हमें खिलाए कौर।।
हमें खिलाए कौर, नहीं माता सम दूजा।
जननी को प्रभु मान,करो तुम विधिवत् पूजा।।
माँ बेटे का यहाँ,जगत में सुन्दर नाता।
देवों से भी बड़ी,लोक में होती माता।।
ममता अंतस में भरी, करे पुत्र को नेह।
पालन पोषण के लिए,वारे अपनी देह।।
वारे अपनी देह,आप गीले में सोती।
चलती नंगे पाव, पुत्र को सर पर ढोती।।
जग में माँ की तरह, नहीं दूजे में समता।
झुकता सबका शीश,देख माता की ममता।।
स्वरचित मौलिक रचना-राम जी तिवारी"राम"
उन्नाव (उत्तर प्रदेश)
©Ramji Tiwari
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