Ramji Tiwari

Ramji Tiwari

मेरी वजह से कभी किसी का दिल ना दुखे न किसी का अहित हो बस मेरे जीवन की यही प्राथमिकता है

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White *रात सजने लगी* शाम ढलने लगी रात सजने लगी दूर कानन कही वेणु बजने लगी तीव्र शीतल मधुर हवा बहने लगी पेड़ की ओट से प्रभा तकने लगी कुसुम रात रानी अब महकने लगी वर्षाप्रिय मंडली शोर करने लगी चाँद को देखकर शमा जलने लगी जमीं थी शिखर पे बर्फ गलने लगी चाँदनी चाँद से गले मिलने लगी फिजा में अजब सी महक घुलने लगी पैर में पैंजनी मधुर बजने लगी कंत खातिर प्रिये सज सँवरने लगी देख सुन्दर छटा नारि नचने लगी प्रेम की हर जगह बात चलने लगी सखी प्रिय मिलन को अति मचलने लगी देख मुख सजन का नारि हँसने लगी लग सजन के गले बाँह कसने लगी विकल थी जो अभी साँस थमने लगी स्वरचित रचना-राम जी तिवारी"राम" उन्नाव (उत्तर प्रदेश) ©Ramji Tiwari

#शायरी #lovesayari #Nature #Friend #sajal  White 

      *रात सजने लगी*

शाम ढलने लगी 
रात सजने लगी 
       दूर कानन कही
       वेणु बजने लगी
तीव्र शीतल मधुर 
हवा बहने लगी
        पेड़ की ओट से 
        प्रभा तकने लगी
 कुसुम रात रानी 
 अब महकने लगी
        वर्षाप्रिय मंडली 
       शोर करने लगी
चाँद को देखकर 
शमा जलने लगी
       जमीं थी शिखर पे
       बर्फ गलने लगी
चाँदनी चाँद से 
गले मिलने लगी
      फिजा में अजब सी
       महक घुलने लगी
पैर में पैंजनी 
मधुर बजने लगी
        कंत खातिर प्रिये
         सज सँवरने लगी
देख सुन्दर छटा
नारि नचने लगी
      प्रेम की हर जगह
      बात चलने लगी
सखी प्रिय मिलन को
अति मचलने लगी
         देख मुख सजन का
         नारि हँसने लगी
लग सजन के गले
बाँह कसने लगी
        विकल थी जो अभी 
        साँस थमने लगी

        स्वरचित रचना-राम जी तिवारी"राम"
                              उन्नाव (उत्तर प्रदेश)

©Ramji Tiwari

White *इन्सान बदल जाते हैं* दिल के सारे अरमान बदल जाते हैं समय के साथ इन्सान बदल जाते हैं समय नहीं रहता है सदा एक जैसा सबकुछ यहाँ पर हो गया केवल पैसा हैसियत देख कद्रदान बदल जाते हैं समय के साथ इन्सान बदल जाते हैं बदलतीं इच्छाएँ समय के साथ हर दिन बदलते हैं खयालात हृदय के पल छिन घर, मन्दिर के भगवान बदल जाते हैं समय के साथ इन्सान बदल जाते हैं बदलती रहती सदा अमीरी-गरीबी बदलते रहते सदा हितैषी, करीबी समय-समय पर परिधान बदल जाते हैं समय के साथ इन्सान बदल जाते हैं समय के साथ अखबार बदल जाता है चेहरा देख कर यार बदल जाता है कुछ तो खुद की पहचान बदल जाते हैं समय के साथ इन्सान बदल जाते हैं सज्जन इन्सान भी बन जाता नीच है कभी वह भी फँस जाता कीचड़ बीच है लालच में पड़ ईमान बदल जाते हैं समय के साथ इन्सान बदल जाते हैं समय कभी न रूकता रहता गतिमान है भूत में बदल जाता यह वर्तमान है खंडहर में सब मकान बदल जाते हैं समय के साथ इन्सान बदल जाते हैं स्वरचित रचना-राम जी तिवारी"राम" उन्नाव (उत्तर प्रदेश) ©Ramji Tiwari

#कविता #love_shayari #motivate #Zindagi #Time  White 

        *इन्सान बदल जाते हैं*

दिल के सारे अरमान बदल जाते हैं
समय के साथ इन्सान बदल जाते हैं 

समय नहीं रहता है सदा एक जैसा 
सबकुछ यहाँ पर हो गया केवल पैसा 
हैसियत देख कद्रदान बदल जाते हैं 
समय के साथ इन्सान बदल जाते हैं

बदलतीं इच्छाएँ समय के साथ हर दिन 
बदलते हैं खयालात हृदय के पल छिन
घर, मन्दिर के भगवान बदल जाते हैं 
समय के साथ इन्सान बदल जाते हैं

बदलती रहती सदा अमीरी-गरीबी
बदलते रहते सदा हितैषी, करीबी
समय-समय पर परिधान बदल जाते हैं 
समय के साथ इन्सान बदल जाते हैं

समय के साथ अखबार बदल जाता है 
चेहरा देख कर यार बदल जाता है 
कुछ तो खुद की पहचान बदल जाते हैं 
समय के साथ इन्सान बदल जाते हैं

सज्जन इन्सान भी बन जाता नीच है 
कभी वह भी फँस जाता कीचड़ बीच है 
लालच में पड़ ईमान बदल जाते हैं 
समय के साथ इन्सान बदल जाते हैं

समय कभी न रूकता रहता गतिमान है 
भूत में बदल जाता यह वर्तमान है
 खंडहर में सब मकान बदल जाते हैं 
समय के साथ इन्सान बदल जाते हैं

    स्वरचित रचना-राम जी तिवारी"राम"
                          उन्नाव (उत्तर प्रदेश)

©Ramji Tiwari

White विधा-मनहरण घनाक्षरी छंद *मधुमास आ गया* कूके कोयलिया बाग,गाती सुमधुर राग। हुई धरा हरी- भरी, मधुमास आ गया। खिले बहु सुमन हैं,भए रम्य चमन हैं। लौट फिर से सुखद, अहसास आ गया। सारे जग की स्वामिनी, वर मंगल दायिनी। शारदा भवानी माँ का, पर्व खास आ गया। लेके पूजा थाल हाथ,टेक तेरे दर माथ। तुमको मनाने माता,"राम" दास आ गया।। हर दिन करें पूजा,और नहीं काम दूजा। मेरे प्यासे नयनों को ,दरश दिखाइए। तप सिद्धियों की खान, अतुलित बलवान। देके हमें वरदान,सबल बनाइए। दे दो हमें वरदान,वाणी करें गुणगान। निज भक्ति भाव प्रीति,हृदय जगाइए। फैला तम चहुँ ओर,दिखे नहीं कोई छोर। फैला पाप जग घोर,तमस मिटाइए।। स्वरचित रचना-राम जी तिवारी"राम" उन्नाव (उत्तर प्रदेश) ©Ramji Tiwari

#मनहरण_घनाक्षरी_छंद #कविता #छंद #Spring #poem  White 
विधा-मनहरण घनाक्षरी छंद 

    *मधुमास आ गया*

कूके कोयलिया बाग,गाती सुमधुर राग।
हुई धरा हरी- भरी, मधुमास आ गया।
खिले बहु सुमन हैं,भए रम्य चमन हैं। 
 लौट फिर से सुखद, अहसास आ गया।
सारे जग की स्वामिनी, वर मंगल दायिनी।
शारदा भवानी माँ का, पर्व खास आ गया।
लेके पूजा थाल हाथ,टेक तेरे दर माथ।
तुमको मनाने माता,"राम" दास आ गया।।

हर दिन करें पूजा,और नहीं काम दूजा।
मेरे प्यासे नयनों को ,दरश दिखाइए।
तप सिद्धियों की खान, अतुलित बलवान।
देके हमें वरदान,सबल बनाइए।
दे दो हमें वरदान,वाणी करें गुणगान।
निज भक्ति भाव प्रीति,हृदय जगाइए।
फैला तम चहुँ ओर,दिखे नहीं कोई छोर।
फैला पाप जग घोर,तमस मिटाइए।।

     स्वरचित रचना-राम जी तिवारी"राम"
                           उन्नाव (उत्तर प्रदेश)

©Ramji Tiwari

Unsplash विधा-दोहा छंद नेट प्रमाण प्रदान कर, करते हैं सम्मान। सहयोग राशि के रूप, लेते कवि से दान।। जो देकर पैसा मिला,वह कैसा सम्मान। जो धन देकर मान ले, नहीं है कवि महान।। गाना आता है नहीं, करते कविता पाठ। जो चोरी कविता पढ़ें, उनके हैं अब ठाठ।। रचना पढ़ते हैं नहीं, देते सुन्दर राय। गैरों की रचना कभी, तनिक नहीं मन भाय।। करे सृजन अवहेलना,कैसा रचनाकार। सच्चे लेखक के हृदय,बहे प्रेम रस धार।। स्वरचित रचना-राम जी तिवारी"राम" उन्नाव (उत्तर प्रदेश) ©Ramji Tiwari

#साहित्य #विचार #दोहा #कवि #Friend  Unsplash 
विधा-दोहा छंद 

नेट प्रमाण प्रदान कर, करते हैं सम्मान।
सहयोग राशि के रूप, लेते कवि से दान।।

जो देकर पैसा मिला,वह कैसा सम्मान।
जो धन देकर मान ले, नहीं है कवि महान।।

गाना आता है नहीं, करते कविता पाठ।
जो चोरी कविता पढ़ें, उनके हैं अब ठाठ।।

रचना पढ़ते हैं नहीं, देते सुन्दर राय।
गैरों की रचना कभी, तनिक नहीं मन भाय।।

करे सृजन अवहेलना,कैसा रचनाकार।
सच्चे लेखक के हृदय,बहे प्रेम रस धार।।

      स्वरचित रचना-राम जी तिवारी"राम"
                            उन्नाव (उत्तर प्रदेश)

©Ramji Tiwari

White *प्यारा मास बसंत* जग से अँधियारा मिटा,हुई सुहानी भोर। बादल छाए हैं घने,नाच रहे वन मोर। नाच रहे वन मोर,घटा घनघोर सुहानी। रिमझिम-रिमझिम रहा,बरस अम्बर से पानी। देख प्रकृति का रूप,सभी के थिरक रहे पग। सन- सन चलती पवन,करे शीतल सारा जग।। दिखती है पहने धरा, हरा-हरा परिधान। कोयल कूके पेड़ पर,गाए सुमधुर गान। गाए सुमधुर गान,सभी का मन बहलाती। पीली सरसों खेत, लहर-लहर लहलहाती। देख भानु का ताप, ठंड पास नहीं टिकती। देखें आँखें जिधर, सिर्फ हरियाली दिखती।। बसंत उत्सव से शुरू,हो जाता है फाग। भँवरा चूँसे फूल रस,गुन- गुन गाता राग। गुन-गुन गाता राग,फूल पर है मँडराता। कल-कल सरिता नाद,सभी के मन को भाता। झूम रहे नर नारि,हर्ष फैला दिगदिगंत। ऋतुओं का ऋतुराज, है प्यारा मास बसंत।। स्वरचित रचना-राम जी तिवारी"राम" उन्नाव (उत्तर प्रदेश) ©Ramji Tiwari

#कविता #springpoem #Beauty #Nature #Friend  White 

       *प्यारा मास बसंत* 

जग से अँधियारा मिटा,हुई सुहानी भोर।
बादल छाए हैं घने,नाच रहे वन मोर।
नाच रहे वन मोर,घटा घनघोर सुहानी।
रिमझिम-रिमझिम रहा,बरस अम्बर से पानी।
देख प्रकृति का रूप,सभी के थिरक रहे पग।
सन- सन चलती पवन,करे शीतल सारा जग।।

दिखती है पहने धरा, हरा-हरा परिधान।
कोयल कूके पेड़ पर,गाए सुमधुर गान।
गाए सुमधुर गान,सभी का मन बहलाती।
पीली सरसों खेत, लहर-लहर लहलहाती।
देख भानु का ताप, ठंड पास नहीं टिकती।
देखें आँखें जिधर, सिर्फ हरियाली दिखती।।

बसंत उत्सव से शुरू,हो जाता है फाग।
भँवरा चूँसे फूल रस,गुन- गुन गाता राग।
गुन-गुन गाता राग,फूल पर है मँडराता।
कल-कल सरिता नाद,सभी के मन को भाता।
झूम रहे नर नारि,हर्ष फैला दिगदिगंत।
ऋतुओं का ऋतुराज, है प्यारा मास बसंत।।

     स्वरचित रचना-राम जी तिवारी"राम"
                           उन्नाव (उत्तर प्रदेश)

©Ramji Tiwari

Unsplash विधा-सोहाशेष आदरणीय श्री शेष मणि शर्मा जी द्वारा रचित नवीन विधा सोहाशेष जो कि दोहा+सोरठा के संयोग से बनती है। मेरे द्वारा रचित एक रचना आप सबके समक्ष सादर समीक्षा हेतु प्रस्तुत है - कनक वर्ण सरसों खिली, रही खूब इठलाय। बैठी तरुवर डाल पे, कोयल गाना गाय। गाय मनोहर गीत, तान छेड़ती अति मधुर। प्रीति प्रणय मन मीत, उमड़े अंतस में प्रचुर। लगे प्रभात तुषार, मन अनंग बढ़ती हनक। मधुप करे गुंजार , धरती दिखती मनु कनक।। कमल कीच में खिल गया,भँवरा गाए गान। कोयल ने भी छेड़ दी, अपनी मीठी तान। तान सुरीली छेड़, गीत सुनाती अति मधुर। पड़ी भानु की एड़, फूटे बीजों में अँकुर। बदले मौसम रूप,समीर बहती अति चपल। भोर सुबास अनूप, खिले सरोवर में कमल।। स्वरचित रचना-राम जी तिवारी"राम" उन्नाव (उत्तर प्रदेश) ©Ramji Tiwari

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विधा-सोहाशेष

आदरणीय श्री शेष मणि शर्मा जी द्वारा रचित नवीन
 विधा सोहाशेष जो कि दोहा+सोरठा के संयोग से
 बनती है। मेरे द्वारा रचित एक रचना आप सबके
 समक्ष सादर समीक्षा हेतु प्रस्तुत है -

कनक वर्ण सरसों खिली, रही खूब इठलाय।
बैठी तरुवर डाल पे,        कोयल गाना गाय।
गाय मनोहर गीत,    तान छेड़ती अति मधुर।
प्रीति प्रणय मन मीत,  उमड़े अंतस में प्रचुर।
लगे प्रभात तुषार,   मन अनंग बढ़ती हनक।
मधुप करे गुंजार , धरती दिखती मनु कनक।।

कमल कीच में खिल गया,भँवरा गाए गान।
कोयल ने भी छेड़ दी,    अपनी मीठी तान।
तान सुरीली छेड़,  गीत सुनाती अति मधुर।
पड़ी भानु की एड़,    फूटे बीजों में अँकुर।
बदले मौसम रूप,समीर बहती अति चपल।
भोर सुबास अनूप,    खिले सरोवर में कमल।। 

      स्वरचित रचना-राम जी तिवारी"राम"
                            उन्नाव (उत्तर प्रदेश)

©Ramji Tiwari

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