कितनी भीड़ है और हम कितने अकेले,
ऐसा लगता है जैसे कोई एक आवाज दे
और हम रुक जाएं पर कोई आवाज तो दे,
कोलाहल भरा है सड़क पर, पर कोई आवाज नही दे रहा....
कहने को सब साथ है पर कोई साथ नहीं,
तभी तुम नजर आई भीड़ में,
गहरी सी आंखों वाली हो न तुम...
हा तुम ही तो थी , जिसकी आंखें जानी पहचानी लगी थी
भीड़ में पर ये क्या तुम भी बिना आवाज दिए,
पास से गुजर कर फिर से शामिल हो गई भीड़ में,
और मैं फिर से प्रतीक्षारत की शायद...
तुम एक बार पलट के आवाज दोगी मुझे,
मैं चल तो रहा हूं पर कदम रुके रुके से है.....
सुनो!!! एक आवाज दो न मैं थमना चाहता हूं अब,
मुझे अब खुद को ये समझा लेना चाहिए कि...
मेरे साथ आना अब तुम्हारा शायद मुमकिन नही.।
©shudhanshu sharma
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