Unsplash मेरा अक्षम्य अपराध बस इतना सा था,
के मेरा प्रेम तुम्हारे लिए अत्यधिक था।
तुम्हारे अंतस की बातों से मैं सदा ही अनभिज्ञ रही,
प्रेम इतना रहा के तुम्हारी कमियों पर भी पर्दा डालती रही,
तुम्हारी झिड़क, अपमान भी सहती रही,
और वो विलक्षण क्षण सदा खोजती रही
जब तुम सदा के लिए मेरे लिए आत्मसमर्पण कर दोगे
मन ने जो तुम्हारी छवि तैयार की वो तोड़ दोगे
मैं आज तक उसी मानसिक शांति की तलाश में हूँ,
और शायद अब सब कुछ सहने की आदी हो चुकी हूँ,
अब ये जीवन सामान्य सा हो गया है,
जीवन निर्वाह करने का ढांचा तैयार हो गया है
©Richa Dhar
#library स्त्री